पहाड़ों पे उगे पेड़
छोटे पहाड़ों जैसे हैं
मुझे पहाड़ों पे
चढ़ने नहीं देते
मैंने चढ़ते सूरज से
दोस्ती कर ली
अब मैं
उन पेड़ों से खुश हूँ
उनके ताने बाने
मुझे थाम लेंगे
नीचे नहीं गिरूँगा
पेड़ मुस्का के फुसफुसाए
नीचे कैसे जाओगे ! हीहीही...
उतरता सूरज जा चुका था ..
मैंने रात का कम्बल ओढ़ लिया
तभी शबनम अपने
सलेटी बादलों से निकली
मैंने उसका हाथ थाम लिया
वो नीचे आ रही थी
मेरे पहलू में थी
लेकिन वो गुलाब को
गीला नहीं कर पाई आज
क्यूंकि मैं ज़मीं पे था
भीगा हुआ
शबनम ने
इतराते हुए कहा
सूखना है
तो तेज़ हवाओं का रुख कीजिये
मगर वो मनचली हवाएं
उस पहाड़ पे ही मिलेंगी
मैं सोच में पड़ गया-
पहाड़ों पे उगे पेड़
छोटे पहाड़ों जैसे
हैं
मुझे पहाड़ों पे
चढ़ने नहीं देंगे
मेरी आवारगी ने देखा-
पहाड़ के ऊपर हवाएं
लहरा रही हैं
और चढ़ता सूरज
मुझे बुला रहा है
वहां उस ओर जहाँ
पहाड़ों पे उगे पेड़
छोटे पहाड़ों जैसे
हैं
और
मुझे पहाड़ों पे
चढ़ने नहीं देते !
मैं आवारगी का हाथ थामे
फिर से सूरज पे था ..
:)
-स्वतःवज्र