Tuesday, 24 January 2012

आवारगी

 पहाड़ों  पे  उगे  पेड़
छोटे  पहाड़ों  जैसे हैं
मुझे  पहाड़ों  पे
चढ़ने  नहीं  देते

मैंने  चढ़ते  सूरज  से
दोस्ती  कर  ली
अब  मैं
उन  पेड़ों  से  खुश  हूँ
उनके  ताने  बाने
मुझे  थाम  लेंगे
नीचे  नहीं  गिरूँगा

पेड़  मुस्का  के  फुसफुसाए
नीचे  कैसे  जाओगे ! हीहीही...

उतरता  सूरज  जा  चुका  था ..
मैंने  रात  का  कम्बल  ओढ़  लिया
तभी  शबनम  अपने 
सलेटी  बादलों  से  निकली
मैंने  उसका  हाथ  थाम  लिया
वो  नीचे  आ  रही  थी
मेरे  पहलू में थी
लेकिन  वो  गुलाब  को
गीला  नहीं  कर  पाई  आज
क्यूंकि  मैं  ज़मीं  पे  था
भीगा  हुआ
शबनम  ने
इतराते  हुए  कहा
सूखना  है
तो  तेज़  हवाओं  का  रुख  कीजिये
मगर  वो  मनचली  हवाएं 
उस  पहाड़  पे  ही  मिलेंगी 
मैं  सोच  में  पड़  गया-

पहाड़ों  पे  उगे  पेड़
छोटे  पहाड़ों  जैसे
हैं
मुझे  पहाड़ों  पे
चढ़ने  नहीं  देंगे 

मेरी  आवारगी  ने  देखा-
पहाड़  के  ऊपर  हवाएं
लहरा  रही  हैं
और  चढ़ता  सूरज  
मुझे  बुला  रहा  है
वहां  उस  ओर  जहाँ

पहाड़ों  पे  उगे  पेड़
छोटे  पहाड़ों  जैसे
हैं
और
मुझे  पहाड़ों  पे
चढ़ने  नहीं  देते !

मैं  आवारगी  का  हाथ  थामे 
फिर  से  सूरज  पे  था ..

:)

-स्वतःवज्र
 

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