Monday 2 January 2012

नाकामयाब काले पतले लड़के और मैं !



मैं कामयाब था,
मैं कामयाब हूँ,
ऐसा सब कहते हैं,
मैंने भी मान लिया है कि-
मैं सचमुच कामयाब हूँ |

फुटपाथ पर रोजाना,
इक काला पतला लड़का कहता-
मैं बीमार हूँ !
मैं बीमार हूँ !
ऐसा बाकी सब भी कहते थे,
ऐसा बाकी सब भी कहते हैं,
लेकिन मैंने नहीं माना कि-
वो सचमुच बीमार है |

लड़का केवल 
हरी लम्बी शर्ट पहनता था |
जो पहली और आखिरी नज़र में 
काली  ही दिखती थी |
अगर कोई उसे दो बार देख जाये तो !

अगर ये लड़का मर जाता तो,
शर्ट गरीबी से आज़ाद हो पाती !

गरीब लड़के झूठे होते हैं |
गरीबी झूठी होती है |
गरीबी गन्दी चीज़ है-
ऐसा सब कहते हैं,
मैंने भी मान लिया है कि-
गरीबी नाकामयाबी है | 

फिर भी अपनी न सही-
उसकी कमतर हैसियत से,
और देखने वालों की-
निगाहों की गिनती कर के,
हर पखवाड़े एक रूपया दे दिया करता था-
उस काले पतले लड़के को |

और दसियों रुपये बचाते हुए,
इस तरह,
ये मेरी इक और कामयाबी थी |
मैंने मान लिया कि-
मैं सचमुच कामयाब हूँ |

बात अभी कल की ही है,
इसलिए गीली 
और कुछ गर्म है ज़ेहन में,
बस इतना ही,
वरना इसकी कीमत 
कुछ भी नहीं | 

कल उस फुटपाथ पे जाना हुआ,
मेरी आँखें अनजाने में,
और कुछ जान बूझ के,
उस काले पतले लड़के को,
खोज रहीं थीं |

उस गरीब यानि नाकामयाब 
और झूठे लड़के को-
क्योंकि मेरे कुर्ते की जेब में,
इक पुराना सिक्का था,
और मेरा मन हो रहा था-
खुद को कामयाब देखने का,
उस लड़के की-
गिचपिची आँखों में |

लड़का नहीं था ! 
वहाँ इक बुढ़िया बैठी थी |
मैं आराम से कह सकता था कि-
वो रो रही है,
अगर उसकी आँखों में-
आँसू होते
जो नहीं थे |
अगर उसकी आवाज़ में-
सिसकियाँ होतीं 
सूखी सी-
जो नहीं थी |
फिर भी मैं कह सकता था कि-
वो रो रही थी |

पतले लड़के कि चीकट हरी कमीज़
और घिसा हुआ कटोरा वहीँ रखे थे |
लड़का गरीब न होता
तो मैं उसे सच्चा 
मान भी सकता था |
वो मुझसे भीख न माँगता 
तो मैं दुनिया का कहा 
मान भी सकता था कि-
वो बीमार है,
जैसे कि मैं कामयाब हूँ !

बदन में हलकी सुरसुरी दौड़ पड़ी,
आज जाने क्यों पहली बार,
मुझे अपनी दुनियावी कामयाबी पे,
वो गुरूर नहीं हो रहा था |

क्या ये अफ़सोस था-
अपनी उन हरकतों पे,
जिन्हें मैं और दुनिया-
दोनों कामयाबी कहते थे,
और घर से निकलते वक़्त
जिसे मैं पहन लेता था 
सूट के साथ |
मैंने आँसू की नमी
महसूस करनी चाही,
लेकिन सहसा मुस्कान उबल पड़ी 
क्योंकि-
मेरा एक  रुपया आज फिर बच गया था !!!


मैं फिर से खुश था
क्योंकि-
दुनिया ने कानों में सरगोशी से कहा-
तुम कामयाब हो गए! 
और
मैंने भी मान लिया  कि-
मैं सचमुच कामयाब हूँ |

 

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