हर सवाल का जवाब है क्यूँकि सवाल वही पैदा हो सकता है जिसका जवाब मौजूद है । सवाल से पहले उसके जवाब की आमद है ।
जिन सवालों के जवाब नहीं पता , उन्हें सही जगह खोजो, सही आदमी से पूछो, सही लफ़्ज़ों में ढालो ।
जवाबात इंतज़ार में हैं अपने सवालात के आने के । मैं भी अपने सवाल का मुन्तजिर हूँ । वो सवाल जिसका एक ही सही जवाब है ; और वो जवाब मैं हूँ...
उस इक सवाल को छूकर मैं अपने मायने खोज लूँगा । पर मेरे छूने के बाद वो सवाल कहाँ रह जायेगा
क्योंकि जवाब के मिल जाने पर सवाल सवाल कहाँ रह जाता है ? जवाब के न मिलने पर सवाल की "वजूद-ए-ख़ुदी " टिकी है और जब सवाल ही नहीं रहेगा तो जवाब यानि कि मैं कहाँ मुमकिन हूँ ? तो फिर क्या होगा ?
हो सकता है मेरे सवाल के स्पर्श से हम दोनों फ़ना हो जाएँ या फिर ये मेरा इक रूमानी ख़याल भर हो ।
हो सकता हैं मैं उसमें उतर न पाऊँ और हम दोनों फिर से भटकने लगें... अपने-अपने दूसरे हिस्से की तलाश मे ।
हो सकता है के मैं कुछ बच सा जाऊँ । एक टुकड़ा या मुट्ठी भर और मुट्ठी भर उस सवाल का इंतज़ार रहे जिसका मिलना काफी मुश्किल है ।
ये भी मुमकिन है की सवाल और जवाब मिलकर, घुलकर, साथ चलकर नया सा कुछ बन जाएँ जो न तो सवाल हो न ही जवाब ! जो कि नज़्म हो या कविता, कलाम हो कोई जिसके पुलिंदे यानि दीवान घूमा करें बेफिक्र । मुँह चिढाते बाक़ी आवारा सवालों और जवाबों को ।
वो नज़्म-ओ-क़लाम दूर देस तलक घूम सकते हैं क्यूँकि उन्हें कोई सवाल पूछ के रोक नहीं सकता, कोई जवाब देके उनके वजूद छीन भी नहीं सकता । वो सबा के साथ दूर देस की महक ला सकते हैं , लहरों पे फिसलके कुछ सीपियाँ चुन सकते हैं.... और शाम ढलने पे वो सीपियाँ साहिल की रेत को सुपुर्द कर अँधेरे से झगड़ सकते हैं बेख़ौफ़ । मैं डरता हूँ अँधेरे से पर वो नहीं डरेंगे । मुझे यकीं है... बस मुझे इंतज़ार है मेरे उस सवाल का... जिसका के मैं जवाब हूँ जो मेरे बिन भटकता फिरता होगा कायनात भर में...जिसके बिन मैं अधूरा हूँ...
मैं इंतज़ार में हूँ अपने सवाल के...