खिड़कियाँ अजब करिश्मा हैं
ये जादू सी हैं
ये दरवाज़े नहीं हैं
जो पूरे खुले हों
ये दीवारें भी नहीं
जिसने कभी किसी को
"उस पार" जाने नहीं दिया
खिड़कियाँ बीच में हैं
दोनों के ..
मेरी खिड़की मुझे दिखाती है
दुनिया बाहर की
और उसके शीशे में
मेरा अक्स भी है धुँधला सा ...
मैं बाल सँवार लेता हूँ जिसमें
जैसे मेरी आँखें
मेरे मन की खिड़कियाँ हैं
इसमें मेरे मन का अक्स है
मेरा मन मगर
अब बाहर आना चाहता है
खिड़कियों से यारी तो ठीक
दीवारों की ग़ुलामी अब नहीं
अब बिल्कुल नहीं
अब बस ..
खिड़कियों से झाँक के
थक गए
चलो अब दीवारें गिरा दें ..
दरवाज़ों के ताले
तुम खोल भी दो
चाहे अब
दीवारें तो गिरेंगी ही...
मेरे ख्यालों ने
तुम्हारी दुनिया की दीवारें
गिरा दी हैं अब...
अब मेरे मन के कमरे में
चार बड़ी खिड़कियाँ हैं
दीवारों के आकार की
उन दीवारों की जगह !
और आसमान की छत है !
उन दीवारों की जगह !
और आसमान की छत है !
दीवारों के आकार की बड़ी खिड़कियाँ
और भी गज़ब करिश्मा हैं...
अब तो बाक़ी सारी दीवारें भी
गिरेंगी ही...
दरवाज़ों के ताले
तुम खोल भी दो चाहे अब ।
तुम खोल भी दो चाहे अब ।
-स्वतःवज्र