अब तक अन-बन थी हम दोनों में एक अरसे से,
मैंने गुज़रे हुए उस कल से सुलह कर ली है |
मेरे कुछ तल्ख़ सवालों से जवाब छुपते रहे उनके,
मेरे सवालों ने पर आज जिरह कर ली है |
(तल्ख़-तीखे)
औंधे मुंह लेटे मुंतज़िर-ए-आफ़ताब थे हर शब,
उस दगाबाज़ के बिन अपनी सुबह कर ली है |
(मुंतज़िर-जिसे इंतज़ार हो, आफ़ताब- सूर्य, शब- रात )
तमाम बे-वजह झगड़ों पे कितना झगड़े हम,
आज उन झगड़ों की पुरज़ोर वजह कर ली है |
नफ़े-नुक़सान की ख़ातिर जिनसे याराना था,
तमाम अय्यारों से अब हमने कलह कर ली है |
(अय्यार- चालबाज़)
कई संजीदा मसअलों से निगाहें फेरीं,
या खुदा आज सर-ए-आम निगह कर ली है |
(संजीदा- गंभीर, मसअलों- समस्याओं, निगह- निगाह )
बूढ़े दरवेश को मैं पाक़ मानता ही था,
ख़ुद को दरवेश मानने की गुनह कर ली है |
(दरवेश- संत)
तेरे जाने के बाद भी मैं मुक़म्मल ही हूँ,
तेरी हर याद मैंने तेरी तरह कर ली है |
( मुक़म्मल- सम्पूर्ण )
ख़ुदा की पनह से नावास्ता रहा मुसलसल,
ख़ुदा ने आज मेरे दर पे पनह कर ली है |
( पनह- पनाह/ शरण, नावास्ता- असंबंधित होना,
मुसलसल- लगातार )
मेरी नाक़ामियों को और कोई तार करे,
उन सभी काफिरों से मैंने दग़ा कर ली है |
(तार- नष्ट )
वो कर के वार मैंने लम्स का, वफाओं का,
फिर से हथियार बिना जंग फतह कर ली है |
( लम्स- स्पर्श )
दफ़न किये थे कई नाले दिल की परतों में,
वो अपनी सिसकी, उनकी आह सतह कर ली है |
( नाले- दर्द भारी आवाज़ )
कितने अनजान थे ना-आशना थे वक़्त से हम,
वक़्त ने हमसे ही पहचान "स्वतः" कर ली है |
(ना-आशना - अपरिचित )
गुज़र चुका ही था कुछ और गुज़रने को था,
सो मैंने गुज़रे हुए कल से सुलह कर ली है |
मैंने गुज़रे हुए उस कल से सुलह कर ली है |
मैंने गुज़रे हुए उस कल से सुलह कर ली है |
- स्वरोचिष "स्वतःवज्र"
(यह मेरी पहली ग़ज़ल है, अस्तु यह मैं अपने पहले स्पर्श यानी माँ और मज़बूत तरीन सहारे यानी पिता जी को समर्पित कर रहा हूँ |
मुझे मालूम नहीं ग़ज़ल के सारे मायने,फिर भी सर-ए-आम आज मैंने पहल कर दी है | )