Thursday, 5 January 2012

*जूतों के फीते*

  इक अज़ीम दौड़
मुझसे हार जाने पे
मुझसे  वक़्त ने पूछा था
बड़ी हैरत से-
के  तुम तो बीच में ही,
थक के  चूर होते थे ,
मुझे पता है के -
तुम  बीच  राह बैठे थे !

बड़ी मासूमियत
बड़ी  ही  वफादारी से,
मैंने कहा के  मैं बैठा था-
बीच  राह  में  पर,

अपने जूतों के  फीते-
बाँध रहा करता था !

-स्वतःवज्र :)
 

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