Wednesday 18 January 2012

रोटी और चाँद की दुनियादारी

एक टुकडा चाँद 
खा के देखा है
ज़ायका बुरा नहीं था 
क्या करूँ
इक आग भूख की शाम ढले 
जल जाती है 
खाली पेट सोता हूँ 
तो नींद खुल जाती है.. 

जब राह लम्बी लगे 
धूप छिल डाले बदन 
कई छोटे टुकड़े
कर लेता हूँ राहों के
और धूप में सेंक लेता हूँ
जैसे माँ रोटियाँ सेंकती थी
कठिन राहों की रोटियाँ
टुकड़ों में
निगल जाती हैं
खाली पेट सोता हूँ 
तो नींद खुल जाती है.. 

और कई रातें 
चाँद की रोटियाँ खाऊँगा
वैसे आधा खाया हुआ 
हँसिये जैसा चाँद पसंद है मुझे 
तो क्यूँ जूठी रोटियाँ मैं 
गैया को डाल दिया करता था? 

रोटी और चाँद की भी 
कोई तुलना है क्या !
हालाँकि चाँद में काले धब्बे से हैं
और रोटी भी 
काले चकत्तों में मिल जाती है
खाली पेट सोता हूँ 
तो नींद खुल जाती है.. 

कुछ बातें एक सी हैं दोनों में
कुछ नहीं भी
रोटी के लिए दिन में 
पसीना जलाना पड़ता है
चाँद रात में 
फ्री में बँटता है
मजदूर की रोटी 
मोटी होती है
posh colony में रोटी 
छोटी होती है 
चाँद सबका 
उतना ही चपटा है

रोटी तुम मेरी छीन सकते हो
चाँद मेरा छीनोगे कैसे?

रोटियाँ मैं रात की 
रखता हूँ 
कुछ बड़े डिब्बे में 
सुबह गर्म चाय में 
डुबा के खा लेता हूँ
चाँद मगर रात वाला 
आता नहीं 
मेरे उस छोटे डिब्बे में
उसकी चाँदनी 
फिसल जाती है 
खाली पेट सोता हूँ 
तो नींद खुल जाती है.. 

रोटी काले तवे पे 
जलती है
चाँद काले आसमान में 
चलता है 

रोटी खेतों में उगती है
गेहूं की शकल में
खेतों के दरिया 
ज़मीं में बहते हैं
ज़मीं आसमाँ में है
आसमाँ में चाँद भी है
दोनों की निगाहें 
कभी कभी 
मिल जाती हैं
खाली पेट सोता हूँ 
तो नींद खुल जाती है.. 


चाँदनी सरहदों के 
पार जाती है
रोटियाँ सरहदों से 
हार जाती हैं 

मैंने देखा है-
इस पार की भूख 
उस पार की रोटी से 
कहती है-
हमारी कोई यारी नहीं

चाँद सरहदों पे 
खुला फिसलता है
उसे सरहदें 
और तमाम ऐसी हदें 
बेमानी लगती हैं
रूमानी सी लगती हैं
चाँदनी के सफ़ेद रस्सों से 
सरहदें 
जो फौलाद सी हैं
ज्वार भाटों सी 
हिल जाती हैं
खाली पेट सोता हूँ 
तो नींद खुल जाती है.. 

वैसे रोटी के लिए दुनिया ने 
कभी जंग नहीं की
जंग हमेशा लालच हवस 
रंज-ओ-ताक़त ने करवाई
चाँद के लिए भी दुनिया ने
जंग नहीं की
रोटी और चाँद दोनों 
जंग के सामने बौने हैं
इन दोनों के लिए 
खून में उबाल नहीं आता
अगर आता 
तो तीसरी दुनिया ने 
कितनी जंगें लड़ी होती!!

इन आला जंगों के किस्सों में 
दुनिया की तारीखें मिल जाती हैं
खाली पेट सोता हूँ 
तो नींद खुल जाती है.. 

रोटी डबल हो सकती है-
"डबल रोटी"
चाँद केवल सिंगल ही होता है
चाँद हमेशा सिंगल था
सिंगल है
और सिंगल ही रहेगा!
क्यूंकि ये 
उस  नीली आँखों वाली 
धरती को घूरा करता है
जोकि पीले प्रभात सूर्य को 
घूमा करती है
इस "प्रेम त्रिकोण" में
चाँद डबल रोटी से 
जलता है 
चांदनी मिलन को सारी रात 
अंधेरों में मचल जाती है 
खाली पेट सोता हूँ 
तो नींद खुल जाती है.. 

रोटी आग से निकलती है 
चाँद भी आग से निकलता है
रोटी मगर आग से गर्म हो जाती है 
शाम को 
चाँद आग को ठंडा कर देता है 
शाम को
रोटी पेट की आग को 
ठंडा कर देती है
चाँद सुबह के सूरज को 
गर्म करके चलता है
दोनों ठण्डे हैं
दोनों गर्म भी है
वही ठंडक और गर्मी 
चाँद और रोटी को 
बारी बारी मिल जाती है
खाली पेट सोता हूँ 
तो नींद खुल जाती है.. 

ये तो दुनियादारी थी 
चाँद और रोटी की
दुनियादारी से अलग
मैंने अपने मायने 
खुद बना लिए हैं-

मैं ज़िन्दगी को रोटी कहता हूँ 
उसकी जुस्तजू को चाँद ! 

मैं भूख को रोटी कहता हूँ 
पिज्ज़ा और कोक को चाँद ! 

मैं तन ढकने के चीथड़े को रोटी कहता हूँ 
कीमती सूट को चाँद ! 

मैं टूटी झोपड़ी को रोटी कहता हूँ 
ताजमहल सी हवेलियों को चाँद ! 

मैं एहसासों को रोटी कहता हूँ 
झूठी मुस्कानों को चाँद ! 

मैं मीठे पानी के कुँए को रोटी कहता हूँ 
स्विमिंग पूल को चाँद ! 

मैं मदर टेरेसा को रोटी कहता हूँ 
मिस वर्ल्ड को चाँद ! 

मैं रेलगाड़ी को रोटी कहता हूँ 
हवाई जहाज़ को चाँद ! 

मैं सिक्कों को रोटी कहता हूँ 
गड्डियों को चाँद ! 

मैं भारत को रोटी कहता हूँ 
India को चाँद ! 

कभी तुम भी खाओ 
मेरे नज़रिये से 
दोनों को 
तुम्हे तो चाँद के साथ रोटी भी 
मिल जाती है
वैसे मैं
खाली पेट सोता हूँ 
तो नींद खुल जाती है..

 -स्वतःवज्र 
 

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