Friday 30 December 2011

अलविदा 2011

किताब का अंतिम पन्ना,
मतलब साल का अंतिम दिन,
दो पन्ने ही संजोने लायक हैं,
बाकी किताब कचरे के डब्बे में डाल रहा हूँ,


इस बार और साफ साफ लिखूँगा
ध्यान से,
और सार्थक रचूंगा,
ध्यान से,


ताकि इस नयी किताब के ज़्यादा पन्ने दुहरा सकूँ ,
संजो सकूँ ..


अलविदा 2011 !


-स्वरोचिष *स्वतःवज्र*

*SENSITIVITY*

           What is the reason that one kid is sensitive towards toys, while another one to birds. Why one child is sensitive to a,b,c,d and other even does not look at alphabets? Why one child laughs more where as the other likes to sleep more? Why we, as tiny kids, are sensitive towards extremely different objects and behaviours. Are there definite patterns of sensitivity? Can we predict nat...ure and intensity of sensitivity? Can we devise some ways and means to sensitise the children as per will, allowing the narrow margin for errors too.

           The answer is somewhat more complex than it appears. Its not only physical condition and environment of the baby. Its beyond that. Much more than the sum total of all apparent variables. Twin babies having identical conditions differ considerably to each other when it comes to behavioural traits which are determined by their individual sensitivities. Its not all about the hardware. Its related to the software pre-installed in baby, along with some software updates and applications installed later from time to time.

            If a systematic study and reseach can unfold methods to guided behaviour of human race nothing like it ! As obtaining guided behaviour is the essence of all theories of leadership. It can cure mega problems faced by globe such as intolerance- religious or national, corrupt behaviour or fear psychosis. Political and social reforms will automatically follow consequently. It may be a better way than Gene Therapy or Designer Babies!
Without hurting the ethical dimension of church and temple.

Sensitivity is a mystery, lets hope we will break the code soon!

-Swarochisha *Swatahvajr*

Bapu Lives :)


Tuesday 27 December 2011

क ख ग...यानि की "कछुआ-खरगोश-गाथा" 2.0




(......'खरगोश का सोना 'कछुए के लिए खरा सोना बन गया, 
और  फिर कछुए ने जो कुछ भी छुआ सब सोना बन गया .............)
 



 मैं गुलज़ार साहब का  fan हूँ, सोचा इस बार मैं भी कहानी flashback  से शुरू करूँ .... 

तो flashback शुरू... 

धूल इतनी थी हवा में की लगभग अँधेरा हो गया था | नासा को लगा पूर्ण सूर्य ग्रहण है, पक्षियों को लगा रात हो गयी है | यह धूल दोनों के पैरों से उड़ रही थी मानो ज़मीन का 'समुद्र मंथन' हो | खरगोश इस बार फिर कछुए से काफी आगे भाग रहा था | उसके माथे पर पसीना था और आँखें लाल! 
ओहो! सेंटी मत हो.. खरगोश की आँखें लाल ही होती हैं ;) 
आपको पता होना चाहिए कुछ चीज़ें लाल ही होती हैं हमेशा, जैसे की माँ का लाल, गु-लाल  और रामलाल |ओ तेरी तो ! रामलाल को नहीं जानते क्या बांगड़ू ?? अरे ! यह PSPO नहीं जानता | भईया यह वही हैं शोले के रामू काका- "ठाकुर साहब की गवर्नेस"! 

वैसे आग के शोले भी लाल होते हैं | बुरे लेखक की खसुसियात यह होती है की अगर वह topic से भटक जाये तो भी पब्लिक बुरा नहीं मानती और पब्लिक बुरा मान भी जाये तो बुरा लेखक अपनी गलती नहीं मानता | यहाँ मैं अपनी नहीं बुरे लेखकों की तारीफ़ कर रहा हूँ |


हाँ तो कहाँ थे हम लोग? हाँ,  खरगोश की लाल आँखों में थे और कछुए का डिस्क्रिप्शन पेंडिंग था | तो कच्छप अवतार से आज तक, हमेशा की तरह यहाँ भी कछुआ साधारण ही था | महापुरुष साधारण होते हैं और इसी की आड़ में हर साधारण आदमी खुद को महापुरुष समझने लगता है | यह मेरा खुद का अनुभव है, खुद मैंने कई बार अपने को महापुरुष महसूस किया  है | आप लोग बार-बार "बाबा आ-राम देव" पे क्यूँ पहुँच जाते हैं भाई ;)

खरगोश और कछुआ दोनों एक बार फिर रेस में थे- 10 साल बाद | काफी  कुछ बदल चुका था | पहली रेस के बाद दोनों की लाइफ बदल गयी थी लेकिन वाइफ वही थी | कछुआ जीता था | वह स्लो था लेकिन steady था | ऐसे लोगों को bureaucracy आत्मसात कर लेती है क्यूँ की ऐसे लोग bureaucracy को आत्मसात कर चुके होते हैं- अन्तर्तम में...जैसे-

***जब नहीं आये थे तुम...***
***तब भी मेरे साथ थे तुम***

देव फिल्म का गाना है | करीना माता जी को गाने का शौक चर्राया था | म्यूजिक डायरेक्टर आदेश श्रीवास्तव भुगत रहे हैं आज तक |
मेरे जैसा असाधारण लेखक जब भी टॉपिक से भटकता  है तो कुछ सोच के- तो कहाँ थे हम लोग? हाँ, slow and steady कछुए पर लदे थे | कछुआ sports quota में सरकारी दामाद बन गया था, रेल मंत्रालय में बाबू | कछुआ रेल का ad करता था- भारतीय रेल- आपकी भरोसे "मंद" साथी |  

'खरगोश का सोना' कछुए के लिए खरा सोना बन गया, 
फिर कछुए ने जो कुछ भी छुआ सब सोना बन गया | 

Midas Touch, Golden Touch | अब दोनों अपने-अपने सोने में खुश थे | कछुआ और भी कई ads कर रहा था- Adidas- Kalidas, Nike, Pepsi... and what not!

उधर कुछ Ad खरगोश को कर रहे थे- नींद की  दवा और Revital| युवराज सन्यास ले चुका था और खरगोश ने उसे सीमलेस्ली रिप्लेस किया था, बिलकुल मस्का! किसी  को पता भी नहीं चला | साँप भी मर गया और लाठी से सीढ़ी बना के सांप सीढ़ी खेल ली | जॉब भी मिल ही गयी थी- Re-Lions Broad Band, जिसकी band पहले से बजी थी, खरगोश और बजाता जा रहा था, बुरी तरह से...  इससे केवल एक बात साबित होती थी की Re-Lions Broad Band हो या खरगोश केवल तेजू बनने से काम नहीं चलता... You have to impart it the final Golden Touch.

रेस के कारण और background -
 दो सवाल सबके सामने मुंह और झोला बाए खड़े थे-

एक, MI -4 में "A-nil Cup- Poor" ने इतनी निर्ममता से टॉम क्रूज़ को sideline  क्यों किया?
और दूसरा, यह रेस दुबारा क्यों हो रही थी?

मैं इतना नासमझ लेखक भी नहीं कि पहले सवाल में भटक के बार बार खुद को पाठकों के निम्न स्तर तक ले आऊं ;) lets take up the second one.


इस "पुनश्च रेस" के होने के कई कारण थे | कई आयाम थे; कई निहितार्थ थे; कई बांगड़ुओं  के अपने अपने स्वार्थ थे !

चार मुख्य कारण थे -
1. ओलम्पिक एस्सोसिअशन 
2. Re-Lions Broad Band
3. अमरीका और
4. Boxer भाई!

 जिनका विवरण इस प्रकार से है-

1. ओलम्पिक एस्सोसिअशन-
यह कारण सांकेतिक था | यह बस मुखौटा था इसकी आड़ में अन्य तीन कारण फल-फूल-पिचक-बेहिचक रहे थे | "सु-race अलमारी" सब मैनेज किये हुए थे सालों से... ( सालों शब्द गाली के रूप में नहीं है यहाँ !)
 


2. Re-Lions Broad Band-
दूसरा कारण इकॉनोमिक था - "ऑर-thick" था काफी | Re-Lions  ने सोचा अगर खरगोश जीत जाये तो turn around किया जा सकता है industry  में-
***"देने वाला जब भी DATA , DATA  छप्पर फाड़ के " ***

खरगोश भी एक अदद-मदद के इंतज़ार में था जिसे प्रमोशन कहते हैं, वह मान गया रेस के लिए; दिल पर छप्पर रख के जिसे उसे खुद फाड़ना था |

3. अमरीका-
 तीसरा और मुख्य कारण हमेशा से ही अमरीका ही रहा है और रहेगा भी | World War से लेके UN  तक, IMF से Recession तक, वियतनाम से ईराक तक, अफगानिस्तान से लीबिया तक, ओसामा से ओबामा तक,  Mc Donald से Monsanto तक, Human Rights से Guantanamo Bay तक, George "WMD"- WEapons Of Mass Destruction- Bush से Nobel Peace Prize विनर ओबामा तक, "Happy Capitalism" से  "Health Socialism" तक, हिरोशिमा से NPT तक !! यही Uncle  SAM  है सब जगह, घनी हरयाणवी में बोलें तो साड्डा चाचा चौधरी !
दूसरे के फट्टे में टांग अडाने कि हैसियत, हिस्ट्री, हरामखोरी, adventure, भोकाल, और आदत के चलते अमरीका को तो आना ही था बीच में... 

अमरीका के लिए यह एक  "balancing  stunt  " था चीन के 'खिल-laugh' चीन के सफल ओलम्पिक 2008 की मिठास में फटा हुआ दूध डालने का सु-नेहरा-अवसर| अमरीका ने पैसा पानी की तरह बहाया और ऐसा बहाया  की "Common-Wealth" Games भी पानी भरे | लगे हाथों CWG पर भी चर्चा हो जाये | CWG का उद्देश्य जैसा की उसका नाम था- "Common-Wealth"अर्थात Wealth को  Common करना था ! इसका mascot था - Shera जो की "Share" शब्द से बना है - means to share the "Common-Wealth. 

4. Boxer भाई- 
Boxer भाई चौथा कारण था | वह कथित तौर पर  दुबई में रहता था  | वह  रेस के परिणाम से  सीधा प्रभावित होनेवाला था  इसीलिए वह  रेस के परिणाम को  सीधे प्रभावित करने वाला था , जैसे की  BCCI  aur ICC  करते हैं कथित  तौर  पर | 
यही Newton फुफ्फ़ा जी का तीसरा नियम है - क्रिया प्रतिक्रिया का नियम | छठवी कक्षा में  कुछ पढ़े होते तो यहाँ Newton फुफ्फ़ा जी के  नाम  पे बुक्का नहीं फाड़ते हुँह .... 
अनभिज्ञ पाठकों के  चलते पक्के से  पक्का लेखक भी  बार बार भटक जाता है |  हाय राम ! हाँ तो  कहाँ थे हम तुम ? ह्म्म्मम्म चौथे कारण की  चीर फाड़ कर रहे थे |

 
Boxer भाई वही सर्वशक्तिमान, सर्वमान्य एवं सर्वज्ञ सज्जन हैं जिनका बोरीवली में बेटिंग का अड्डा और कांदीवली में डांस बार है | इनका धंधा मलिहाबाद से मकाऊ तक, हावड़ा से हवाना तक और विरार से वेगस तक समुद्रगुप्त के विस्तृत राज्य की तरह फैला है और गुप्त भी है ! Boxer भाई का समुचित व समग्र वर्णन अलग से "Boxer  चालीसा" के रूप में प्रकाशित किया जाएगा |
इवेंट हॉट था इसलिए फिक्सिंग की भारी ज़िम्मेदारी Boxer भाई ने ले रखी थी | यह तय हुआ की कछुए को हारना ही होगा, उसी में प्राणिमात्र का कल्याण है |

खेलों के माध्यम से मानव जाति का और खुद अपना सदियों से "Weak- Ass " करते आ रहे Boxer भाई ने फ़ोन करके कछुए को हार जाने की "सलाह" दी | कुछ लोगों ने, जिसमे खुद  कछुआ और पुलिस कमिश्नर शामिल थे, इस "सलाह" को धमकी की तरह लिया | 

"सलाह" - एक सब्जेक्टिव शब्द है | इसके अनेक मतलब हो सकते हैं, जैसे माँ-बाप की सलाह का मतलब होता है - "ञ" और मैंने KG में पढ़ा था- "ञ" से कुछ नही!!! 
 
Boxer भाई ने 'Million Dollar Baby' देखी थी और Eastwood दद्दू से काफी प्रभावित हुआ था | कोच के महत्व को स्वीकारते हुए खरगोश के लिए  "कोच की खोज" शुरू की गयी | जैसा की पुराणों में लिखा है की जोरू देसी और कोच बिदेसी ही अच्छा होता है- बिदेसी कोच की तलाश थी | लेकिन Boxer भाई ने ग्रेग चैपल, बॉब वूल्मर और पीटर रोबक की नजीर लेते हुए देसी कोच पे ही focus करने की सोची | finally,  मुन्ना भाई की सलाह पर सर्किट को यह ज़िम्मेदारी सौंपी गयी | बोले तो, सर्किट ने कृष्ण की तरह गोवर्धन पर्वत को उठा भी लिया था | कोच का कुल काम इतना था की रेस सफाई से हो और उससे भी ज्यादा सफाई से 'फिक्स' हो!
कोचिंग के नाम पर सर्किट ने  कछुए से केवल इतना कहा- " अबे जेदा लोड नई लेने का ! मिल-खा सिंह और पिटी भूसा ने ही लोड ले के कौन सा तीर मार लिया था! रोड-रनर को देख कार्टून नेटवर्क पे- खोपड़ी नरम और पैर गरम!! जय हो रोड-रनर की... हेहेहेहे... "

"रेस वाला दिन", भोजपुरी में बोले तो The D Day-
दोनों ने अपने अपने तरीके से भगवान् को पटाने की कोशिश की | a-सत्य सांई बाबा के पास से 'दबा के' सोना निकलने से पहले तक कछुआ सांई बाबा का घनघोर-भयंकर-भक्त हुआ करता था उसने उन्हें याद करने की कोशिश की और उस सोने को भूलने की ....

खरगोश पवन पुत्र हनुमान का चेला था और केवल हवा से बातें करता था | राणा प्रताप का एक मात्र famous  आइटम चेतक उसका आदर्श था |   ( वही चेतक जो जहां तहां चौकड़ी भर भर कर निराला बन गया था ब्लैक एंड व्हाईट फिल्मों के टाइम में ) खरगोश ने भी न सोने की कसम खाई और सोने को भूलने की कोशिश की | 

Stadium का माहौल काफी रूमानी हो रहा था | रेस लम्बी थी - Cross Country मतलब stadium  फिर outer  फिर stadium | जैसा की आमिर खान की -जो जीता वही सिकंदर- में हुआ था... वैसा ही...

VIP Gallery में कुछ क्रिकेटर बैठे थे | क्रिकेटर अपने साथ झऊवा भर के T-20 की अप्सराएं यानि कि cheer girls लाये थे | वे यहाँ भी पूरे आयोजन पे भारी थीं | दो काम एक साथ निपट रहे थे- आदमी की कमजोरी का बाज़ारीकरण और नारी सशक्तीकरण ! आदमी confuse था- क्या क्या देखे और क्यों देखे आखिर !

VIP Gallery में नेता जी लोग भी ठस थे | "या शुभ्रवस्त्रावृता" की तर्ज पर सफेदी फैली थी | गाँधी और अंग्रेजों के बाद केवल खेल प्राधिकरणों ने ही खादी के धांसूपने को तह-ए-दिल से स्वीकार किया था | खादी ने खेलों को निराश भी नहीं किया था | चाहे बात CWG की हो या ओलम्पिक की, हमने सब जगह मुँह की खाई थी और इसी खाईं को भरने के लिए 'टैक्स पेयर की गाढ़ी और मीठी कमाई' खादी के बोरों में  में भर कर झोंकी जा रही थी | मालूम हो की सभी खेल प्राधिकरणों के चेयरमैन नेता जी या उनके साले साहब ही हैं और यह प्रथा एक तरह से ठीक भी है | सारी खुदाई एक तरफ और जोरू का "मुआ भाई" एक तरफ; और जहां खुदाई होगी वहाँ खाईं तो होगी ही | इसी को भरना था | भ्रष्टाचार का चरखा चला चला के खेलों की खादी से | यहाँ भी गाँधी relevant थे... बदस्तूर...

उधर VIP Gallery से safe distance पर कुश्ती और कबड्डी जैसे भौंडे और फिसड्डी खेलों के खिलाड़ी भी जुगाली कर रहे थे, जबकि इन्हें कोई घास नहीं डाल रहा था | ये लोग हाव भाव से normal थे क्योंकि इन्हें कोई भाव नहीं दे रहा था |


 Flashback ख़त्म हुआ-
 हाँ तो... धूल धूसरित दोनों भाग रहे थे बे-तहाशा | इस गला काट प्रतिस्पर्धा के पीछे का माजरा असल में बिलकुल अलग था | स्टार्टिंग पॉइंट को छोड़कर stadium के बाहर आते ही दोनों ने accelerator पे से पैर हटा लिया और खुद को न्यूट्रल गेअर में डाल दिया !


कछुए को यह रेस हारनी थी क्योंकि Boxer भाई अन्ना हजारे जी की तरह अपनी जुबाँ का पक्का था | पता था कि वह टिक्का बुट्टी कर डालेगा...


खरगोश को तो यह रेस हारनी ही थी क्योंकि adidas और पेप्सी के stakes काफी हाई थे | अगर कछुआ हार गया तो endorsement contracts का क्या होगा, ऐसा दस बीस बार हो गया तो इन्द्रा नूई शिकंजी बेचेंगी चारबाग रेलवे स्टशन पे... हेहेहेहे...| मज़ा खेलों में नहीं है, हीरोज़ बनाने में है, यूथ आइकन बनाने में है, फिर उस यूथ आइकन से सामान बेचवाने में है | कितने ही क्रिकेटरों का ऊँचा कद इसी कारण से है की वो पेप्सी की बोतल पे खड़े हैंगे adidas का जब्बर जुतवा पहिन के | जय हो... 

दौड़ते हुए दोनों एक छोटी पहाड़ी के चढ़ावदार रस्ते पर आ गए | रास्ता गोल गोल था, बगल में खाईं थी | धूप तेज़ थी | तभी एक बैलगाड़ी आती दिखी | तेज़ धूप से बचने के लिए दोनों धावक उस ओर बढे | एक बूढा बैलगाड़ी को चला रहा था और एक छोटा बच्चा पीछे लेटा था, सो रहा था शायद | दोनों लपक के बैलगाड़ी की ममता भरी छाँव में आ गए और साथ साथ चलने को मजबूर हो गए |


कछुआ- Hi चीकू ! i think आज तो तू ही जीतेगा | 
(कह कर धीरे से बाल खरगोश के पाले में सरका दी )

खरगोश- Hi कल्लू ! मैं तो थक रहा हूँ | Revital न तो युवराज पे चली न मुझ पे चल रही है ! तू  जीतेगा  |
 (खरगोश मन मुस्काया )

कछुआ-नहीं नहीं... वैसे भी तुम तेज हो, very fast and swift! अगर सोये नहीं तो सबकी वाट लगा दोगे बे !  

खरगोश-तेजू बनने से "कद्दू" कुछ नहीं होता | लम्बी रेस के असली घोड़े तुम हो | slow but steady! Endurance है तुम में |


कछुआ- अबे घोड़ा बोल दिया! घोडा होगा तेरा बाप! जीत जा न यार प्लीज़... 
खरगोश- नहीं तू..
कछुआ- नहीं तू..
खरगोश- नहीं नहीं तू..
 कछुआ- नहीं नहीं नहीं तू..

(दोनों का desperation बाहर आ गया और पूरी ज़मीन पर फ़ैल गया, दोनों लोफ़र टाईप के बैल पीछे घूमे, घूरने लगे फिर आँख मारी और गाने लगे- )


 ***सब गन्दा है पर धंधा है ये!***
 ***सब गन्दा है पर धंधा है ये.....***

इतने में वह हो गया जो नहीं होना चाहिए था | पहाड़ी पर एक शार्प मोड़ आया और एक बड़ा सा पत्थर बैलगाड़ी के बाँए पहिये से टकराया | तेज़ आवाज के साथ पहिये की कील निकल गयी | पहिया भी निकल गया | झटके से बूढा असंतुलित होकर नीचे गिर गया और बेहोश हो गया | संक्षेप में कहें तो- 

***एक मोड़ आया और बुड्ढा गड्डी छोड़ आया!***


 अब बैलगाड़ी केवल दाहिने पहिये पर घिसट रही थी और आगे का रास्ता घुमावदार था | बच्चा कुछ देर बाद बैलगाड़ी सहित खाईं में गिरने वाला था | यह महसूस करते ही खरगोश के कान खड़े हो गए और कछुए की हवा निकल गयी |


कछुआ-अब क्या किया जाये! टाइम कम है!

खरगोश-तुम्हारी पीठ मज़बूत है | मैं बाँया हिस्सा उठाकर तुम्हारी पीठ पर टिका सकता हूँ.. थोड़ी दे खीँच सको तो... 

कहकर खरगोश पूरी फुर्ती से लपका और कछुए की पीठ पर axle का बाँया
हिस्सा उठाकर टिका दिया | अब दूसरे पहिये का काम कछुआ कर रहा था | खरगोश ने झपट के बैलों की कमान थाम ली और मोड़ पर बैलों को मोड़ दिया | कछुआ पूरी ताकत से बैलगाड़ी उठाये था | खरगोश भाग के पास के गाँव में गया और मदद ले आया | बच्चा बच गया था | Tent Sports और Start Sports ने पूरा वाकया कवर किया था मगर मदद को आगे हरगिज़ नहीं आये, मीडिया ने ऐसा कोई पहली बार नहीं किया था इसलिए इसपर किसी का ध्यान नहीं गया |


'रेस की' और 'रेस करने के मूड की' ऐसी की तैसी हो चुकी थी | दोनों वहीं बैठ गए | बिना कहे दोनों को सच का अनुभव हो चुका था | खरगोश और कछुए में रेस संभव ही नहीं है जैसे की आम की बराबरी अंगूर से नहीं की जा सकती | आम आम है और अंगूर अंगूर... हाथी हाथी है और लंगूर लंगूर...| दोनों एकदम अलग अलग dimensions हैं | दोनों के अपने गुण-धर्म हैं, अपनी अच्छाइयाँ हैं और अपनी कमियाँ हैं !दोनों में तुलना असंभव ही नहीं अनुचित भी है |

इतना ही नहीं जीवन का सौन्दर्य एवं स्वाद गलाकाट प्रतिस्पर्धा में नहीं बल्कि परस्पर निर्भरता और संतुलन में है | दोनों ने परस्पर निर्भरता से अपनी अपनी खासियतों को इस्तेमाल करते हुए बैलगाड़ी के संतुलन को बचाया था; एक मासूम बच्चे को बचाया था और incidently  दो लोफ़र बैलों को भी बचाया था | यह "जीवन के संतुलन की कला" ही थी !

दोनों जीता हुआ महसूस कर रहे थे | दोनों खुद से जीते थे | खुद के भीतर पल रहे डर से जीते थे | दोनों खुश थे | Boxer भाई, adidas और पेप्सी जाएँ तेल लेने | ये जोंक इन्हें तभी तक चूस सकते थे जब तक दोनों ऐसी "Rat  Race" को choose करते रहेंगे!  खतरा डराने वाले से नहीं डर से होता है | और यहाँ खतरा टल गया था | तभी पब्लिक दौड़ती हुई आई और दोनों को कन्धों पर उठा लिया | पब्लिक ने भी अपना काम कर दिया था यह उसका maximum था | रेस ख़त्म हो गयी थी कछुए और खरगोश में अब कभी रेस नहीं होगी | दौड़ेंगे दोनों, पर 15 अगस्त को, हाफ मैराथन में, कैप्टन मनोज पाण्डेय की याद में, कारगिल की याद में |

 जैसे की आज कल हर बड़ी गाथा का अंत होता है यहाँ भी हुआ- 'खाज तक'  और 'भिन्डियाँ टी.वी.' उनकी बहादुरी और शौर्य की गाथा गला फाड़-फाड़ के रेंकने लगे !अब कुछ बाकी नहीं था |

यह थी- क ख ग 2.0... 
यानि की "कछुआ-खरगोश-गाथा" 2.0



 -स्वरोचिष *स्वतःवज्र*










Monday 26 December 2011

" प्रेम का सौंदर्य " दूरी में ही है - चंदा से चौथी मुलाक़ात ! :)



आज चंदा कुछ नाराज़ सी थी ,
सोलह में से केवल आठ कलाएं !
केवल  आठ  सिंगार !!
आधा चेहरा काले घूँघट में  ढक रखा था |

ए जी चंदा ! लो हम आ गए , देखो न इधर !

चंदा बोली - हम नाराज़  हैं, क्यूंकि  तुम्हारे आँगन की वो "रात की रानी" तुम्हे छूती है...  वह पास जो है इतनी !

ओह चंदा !

मगर "रात की रानी"  हरदम साथ तो नहीं -
पास हो के भी नहीं ! 
वो  आंगन में  इतनी पास  है  कि हरदम दूर है ,
दूरी के  कारण ही तुम हरदम  साथ  हो ...हर रात !
जहाँ भी  गए  हम  इस दुनिया में ,
मेरी चंदा  सामने थी  क्यूंकि  तुम  दूर  थी !

दूरी  में   ही  प्रेम की  असली अनुभूति है,

प्रेम स्पर्श में  नहीं -
स्पर्श  की  अनुभूति  में  है  |


चंदा ! अनुभूति स्पर्श  में  नहीं ,
वह  तो  स्पर्श  की  उम्मीद में  है .. हर  बार ..

सौंदर्य-प्रेम  के  लिए पास  आना ज़रूरी हो  सकता है ,
लेकिन "  प्रेम  का  सौंदर्य "  दूरी में  ही  है |
हमारे बीच की  ये पौने चार लाख किलोमीटर की  दूरियाँ भी  कुछ नहीं ,
तुम्हारी चांदनी की  सफ़ेद चमक यहाँ भी  पुरज़ोर है  चंदा !

शरारती चंदा  ने हलकी अंगड़ाई लेते हुए ,
एक मुट्ठी गीली चांदनी  और एक  मुट्ठी  ठंडी पवन फेंकी .. हमारी ओर..

और चंदा  मुस्कुरा दी !




- स्वरोचिष "स्वतःवज्र "
(26-12-10)

अच्छा बब्बा ! ( Genre- Comic )




बब्बा आएगा ! 
बब्बा आएगा !!


दौड़ा भागा सारे दिन, 
ख़तम किये सब काम,
भूख लगी है ज़ोरों की, 

खायेगा अब आम |

खायेगा अब  आम,
थी उन हाथों में रस्सी,
पेड़ ने मारा भाला ,
उड़ गयी सारी मस्ती |



पेड़  ने  कहा-
गन्दा बब्बा !गन्दा बब्बा !!




सूरज वही था
पर दिन  नया था ,


बब्बा आएगा !
बब्बा आएगा !!


दौड़ा भागा सारे दिन, 
ख़तम किये सब काम,
भूख लगी है ज़ोरों की, 

खायेगा अब आम |

खायेगा अब  आम,

था  उन  हाथों  में  पानी !
प्यासे पेड़ से आम  मिला,
ख़तम कहानी |


पेड़  ने  कहा-
 
अच्छा बब्बा ! 
अच्छा बब्बा !!




- स्वरोचिष "स्वतःवज्र"

Sunday 25 December 2011

~¤~ swar ~¤~

"My Experiments With Truth And LIES" (on 2nd Oct)

I should not seek refuge in d past. There was no Gandhi or Shastri ever, more divine dan u r or i am.. Bt d difference lies in d fact dat dey "Promised n Lived upto dat"

I m weaker dan gandhi or shastri because i fear, i fear to commit, i m greedy n i cant resist d temptation of wealth n power..

During 2003-04, i decided to find out what was peculiarity dat make gandhi so powerful to lead mass strgles succesfuly. I startd by his autobiography n sm movies latr on. Kept on searching abt non co operatn or civil disobedience. Bt to my utter surprise d buk was ful of his experiments wid vegetarianism n clay therapy. I found he was deeply spiritual n least political. He alwz fought wid in, wid himself, wid his own weaknesses! Dat s y he was a leader. Able to lead..

How did he do dat? Answer is FAITH. At one instance he writes dat faith is nt smthg to grasp, its a state to grow into. Spirituality strengthens d faith n u grow into it !

I believe if u have a goal like gandhi n shastri had, U hav a chance to find ur own way to grow into dat deep faith. Dat is fr u only, ur happines only. U r nt doing it fr nation or society. Its fr ur own peace n solace. Its ur experiment with the truth n lies.. Only urs. -SS

ALGEBRA OF POVERTY

Why "POVERTY" has a "V" n not a "W" ??? How to get a W? How to impart Power to poverty?

Semantically, If 2 V's are joined to collaborate it wil become a W, see
V + V = VV => W,
po(v+v)erty => poWerty..

Practicaly, social Self Help Groups r doing d same thing. Joining dem.

Actually all "powerfuls" have d characteristics to form associations, be it politicians, bureaucrats, industrialists, NGO- Civil society grps or even mafia! Bt poor dont form groups. N nobody wants dat dey know it. Even dis whole crap, which i m writing is in english n dat too on fb. Obvious wastage. Dey wont b reading it.
:( :( :(

Still i m "A THEIST" n not ATHEIST!

They say i dnt pay homage to relics,

They say i dnt worship d idol,

They say i m arrogant to defy their rituals,

But my heart is wrung by the hungry farmer,

i have faith in him,

i have faith dat one day he will have one more bread.

Since i have FAITH!

I feel,

Still i m "A THEIST" n not ATHEIST! -SS
 
ए eco friendly!
Nature के रक्षक !!
मैं भी हूँ Nature  !!!

हरे पेड़ों से मैंने पूछा ,
कौन काटे तुझे ?
पेड़ों ने डाली झुका दी और कहा ,
Its
eco friendly!
Nature के रक्षक!!
और पेड़ हँसने लगे ज़ोर से .. हाहाहा ... 

गन्दी हवा से  मैंने  पूछा ,
यह  किसका धुआं ?
हवा ने  खाँसते हुए कहा , 

Its eco friendly!
Nature के रक्षक!!
और  हवाएं हँसने  लगीं ज़ोर  से ..
हाहाहा ... 

गन्दी  नदियों से  मैंने  पूछा ,
यह किसका  chemical?
नदी ने  गंदे आंसुओं के  साथ कहा , 

Its eco friendly!
Nature के रक्षक!!
और  नदियाँ हँसने  लगी  ज़ोर  से ..
हाहाहा ... 

सूखी मिटटी से  मैंने  पूछा,
यह  कैसा कचरा ?
मिटटी ने  गंदे  ढेलों के  साथ  कहा , 

Its eco friendly!
Nature के रक्षक!!
और  मिटटी  हँसने  लगी  ज़ोर  से ..
हाहाहा ... 

तो क्यों हँसते हो तुम चारों ?
डरो मुझ eco friendly se,
मैं  हूँ  वह ,
nature का भक्षक ! 

पेड़ झूम के  बोले ,
नदियाँ  लहरा के ,
हवा  का  झोंका ,
मिटटी  साथ  लाकर बोला - 

E eco friendly! 
हम  सब  हैं  Nature ,
विचारों से,
औजारों से,
क्यूँ काटे  हमें ?
क्यूँ  बाँटे हमें  इस तरह ?
 
तुझ में हैं हम सब ,
हमसे हो तुम सब,
भागोगे कब तक ?
जागोगे  कब तक ? 

ए eco friendly!
Nature के रक्षक !!
हम  सब  हैं  Nature !!! 



-Swarochisha "Swatahvajra"
:)

"Absenteesm vs Heedfulness"

Absenteesm vs Heedfulness-



Generally absenteesm is defined as physical presence yet spiritual aberrations. 

They used to say n i eventually started feeling that my background thinking process, if comes to the centre stage of thought process, is a
mismatch. Internal dialogue to self should be minimal  and in any case should not be louder dan the interactions wid external world. 

But I think, a point of reference, if chosen otherwise, i mean if you set ur internal self dialogue as origin, the anomaly is removed. The person who is having more interesting conversation inside, may not and should not feel it to be abnormal And should continue romancing with the melody of light music resonating with in. Even if you seem to be absent, you may be mindful! Let them guess otherwise, let dem assume as they want. If u feel coherent and constructive, you are!

In Gita Krishna says "What is night* for all beings is the time of awakening* for the self-controlled; and the time of awakening* for all beings is night* for the introspective sage. "

*Here, night =>Absenteesm,
n awakening =>Heedfulness.
Can be interpolated to support my point.

Many a times they felt me to be absent. But i know i was alwzays heedful. Our frame of references were different n they are like that even now. I welcom their perceptions but believe only in mine. Nobody except myself can make me feel absent.. :)

Keep being absent, enjoy heedfulness!
-SS ;)

"Touch and Love"



Love is a mental state, we grow into.

We cant fall in love wid someone, its a mental state in which we evolve when we get involved with the beloved via interactions n touches.

A "mother fed baby" loves her mom becoz both of them r in continuous physical touch. Mothers touch, maa ka sparsh. Thats important. Most important. Physical touch initiates psychological touch. Its a movement from macro to micro state. In the language of Patanjali, "Sthool se Sookshm ki or". Hence both r in love, deep love.

The baby grows up becomes a kid. Goes to school. He wants a bicycle. Papa sanctions the budget. This is not enough. Kid wants papas index finger to hold tight. Cross d road, go n buy d bicycle. Even den papa holds d bicycle n make him learn to paddle it. Both r in love, deep love.

Kid turns to a boy nw. He needs a bike. Mumma nods papa sanctions the budget. He doesnt need dem to buy it. He has his gang to such matters. Mothers touch, maa ka sparsh is reduced, Interactions too. Still dey r in love, not so deep.

Boy turns into a man. Paragraphs r reduced to sentences. Mothers touch, maa ka sparsh reduced just to "Charan Sparsh". His girlfriend has borrowed these sentences n touches. Not to wory, she will hand over it to his wife, if they get bored. Papa n maa feel dey love him. He believes he love dem. All believe love is always deep!

He is married now, obviously happily. Papa n maa r too happy. Sentences r reduced to words. Mothers touch, maa ka sparsh is lost, Interactions too. Now he is no more interested in mummas lullabies n papas stories. He himself is "a papa". No comments on their love.

Wait, now he has a baby. Roles r changed. He is still in love but the objects r changed. Total love in this universe is, thus constant!

24 hrs. Limited touches, limited interactions r possible. Distribute it well. Ur love is limited. Dont lose d touch wid them who love u. Go n touch dem. Touch is important. It helps u grow in love.

Remember, We cant fall in love wid someone, its a mental state in which we evolve when we get involved with the beloved via interactions n touches! :)

-Swarochisha "Swatahvajra"

Knowing the Knowables

Knowing the Knowables-

Its d most critical to know what is to be known. Here lies d difference between information n true knowledge. A simple example is dat- its nt important to have information of all flights frm New York to Mumbai, rather to know how to know it. And more precisely to know when one intend to travel. Its d simplest case, order of complexity of situations vary considerably.

Now how to do it? The answer is asking pertinent questions at right time. Many a times d question must be asked to the self. If the question is asked to the self there is one more point to be noted- taking right assumptions. If question is for smone else, question d assumptions also which r taken for granted.

Knowledge is a function of time, place n individual role played. There is always a danger to neglect d change of any of 3 variables.

What are d advantages of knowing d knowables? Its related to d efficacy of leader, efficiency n nontheless survival!

Knowledge of situation n knowing that one knows d knowables- initiates to able leadership. If u know that a situation of "Vaccum of Leader" is going to take place u can assert as one strong contender. Leadership is not granted, its earned rather its snatched! Snatched by using knowlege of knowables with an impeccable timing. Its a win-win-win situation fr all viz leader, employee n organisation!

Its inherently a triangle of- knowables, leadership n results. Practice of n heedfulness towards knowables can make wonders!

-Swarochisha "Swatahvajr"
:)

चंदा, रेत और हम- तीसरी मुलाक़ात ! :)

 चंदा, रेत और हम- तीसरी मुलाक़ात ! :)
 
सागर किनारे सफ़ेद रेत पर थे...
इंतज़ार था चंदा का |
तारों ने कहा आज चंदा  नहीं आयेगी रुखसत हो जाइये |
नादान तारे... हमें पता था  चंदा  आयेगी...ज़रूर आयेगी... 
तभी दूर नारियल और ताड़  के  घने  झुरमुट  में  आँचल  लहराती...चंदा  दिखी .. 
सागर  से नहा के  निकली थी शायद, 
क्योंकि बाल अब भी गीले थे और हवा में उड़ नहीं रहे थे |
हमने ठंडी चांदनी आँखों में  भर ली ...
और ऑंखें बंद भी कर लीं ...
थोड़ी चांदनी  छलक गयी |
चंदा  को  लगा ये आंसू हैं ...
वो बोली .. इतना  सारा पानी है इस सागर  में ..
पर ये  दो बूंदे बेशकीमती हैं ..
और  चंदा  के  कहने पर  रेत  ने  उन बूंदों को  अपनी गोद में  छुपा लिया |
हमने  चंदा  से  कहा  चलो थोड़ी  दूर  साथ चलें ...
हम रेत  पर तुम चांदनी  की गोद  में ..
तुम  उस कोने पर  हम इस  कोने  पर ..
हो  सकता है  दोनों किनारे  दूर  कहीं मिलते हों ..
दूर  ही सही!
और  हमने वो  दो  बूंदों वाली रेत  उठाते हुए कहा-
तुम्हे ये  देना भी  तो है चंदा !
चंदा ने  हामी भरी ...
और  चंदा  मुस्कुरा दी !
 
-स्वरोचिष "स्वतः वज्र"

7 FAQs- (Genre- Spiritual, Meta Physical)

7 FAQs -
Q1. What is dharma?
A. Ur goal/duty dat u hv set to achieve/perform.

Q2. What is karma?
A. Ur acts.

Q3. What is virtue (PUNYA)?
A. Dat act which leads to or is concomitant with ur goal.

Q4. What is sin (PAAP)?
A. Dat act which weakens u. Disables u to achieve ur goal.

Q5. Who is God?
A. Its a mental state, achieved by us wen all our goals r fulfilled. The state of SUPREME BLISS. The True State. THE TRUTH.

Q6. Then who r 33 crore gods n goddeses?
A. They r models to undrstand. As we used to do in our science class. Model is not truth. Its an abstraction of reality.

Q7.What is heaven or hell?
If u feel strong its heaven, if weak its hell.

Conclusion- All dat u have read above is GARBAGE n RUBBISH. Dnt believe in anybody. Experiment by urself. And find ur own God. Everybody has to do it at last. -SS :)

"The Song Of Pulse And Spark" (Genre- Spiritual, Meta Physical)



When I was a tiny kid,
when I had a little to ask,
God was very dear to me,
I used to feel d pulse n spark!

When i grew some more,
i felt d need for more,
n i went to God n prayed-
O' Lord! Give me fresh air to breathe,
God granted!
I felt d pulse, I felt d spark.


When i grew some more,
i felt d need fr more,
n i went to God n prayed-
O' Lord! Give me pure water to drink,
God granted!
I felt d pulse, I felt d spark.


When i grew some more,
i felt d need fr SOME more,
n i went to God n prayed-
O' Lord! Give me a car, a bunglow, some gold n blue eyes.
God was silent,
I felt no pulse, I felt no spark.
Grim dark.

Now i feel no omniscience,
for i created God for myself,
for water for air,
for my convenience.

Now i feel no God outside,
Now i feel no light outside.
But wait!
I feel a pulse inside,
I feel a spark inside,
its resonating in me far n wide.

Now i realise melodious song-
of pulses n spark in me in u n everyone,
HE used to sing i never heeded.
God gave me nothing I WANTED,
He gave me everything I NEEDED.
-SS :) October 12, 2011

When I TOUCHED Her... (Genre- Humor, Romance)

I woke up in d morng, n saw her smiling while beside my pillow,
.

.
I wantd to hear a melody,
n i TOUCHED her softly,
she sang a beautiful song to me,


n den i paused fr a sec, n gazed in her bright n shiney FEATURES,
WOW.. Beauty personified!


With a ticklish TOUCH, i wanted to tease her.. N she grew red with a changed THEME of blush,

suddenly i realised, dat i have to do lots of work today,

n i locked d KEYPAD of d TOUCH SCREEN of my phone!

Who d hell needs a wife!
I have a TOUCH SCREEN wich can be made SILENT at will..
;);)

















I LOVE U MY N-8 :)

Suffering Leader Alone Works! (Genre- Introspective, Atomic)

Suffering Leader Alone Works!

All great men were crucified, some literally were. Its bothway. Great men wanted to renounce. The followers, all the more, wanted them to renounce. All the followers want their leaders to suffer! No action of Jesus, Juda, Buddha or Gandhi was ever praised as they swallowing pain! Suffering leaders lead to satisfaction of the followers!

What is it? Vanity? May be its a feeling of satisfaction. The follower tests d master on seeing him in pain. Master is undeviated. Follower feels gud coz he realises, his master is greater than him. Master can bear dat d follwer cant.

May be its my over exaggeration of the things, as i do often, still i feel, the followers least care about the collective goal, they must be made to be like. Rather they r in search of their "Ideal Leader" n personal interests. This lowly view of followers doesnt reduce their relevance to their leaders. It only makes d leader aware of two things- Firstly, Leader shud align the followers' goal to the collective goal
Secondly, Without followers there is no leader. And the followers need a suffering leader!

Eventually, Suffering is not that bad too. Its a subjective term. One act which is suffering for me e.g. Studying computer science, may be bliss for many intelligent people. All we have to do, is to find out dat suitable activities which r bliss to us, but they, the followers, percieve it as suffering. Here i am assuming myself n the reader, if there is any, to be leaders, please dnt count on it.

Same thing was practised by Gandhi. Satyagraha was his passion. For masses it was 'The Suffering Gandhi'!

If u want to lead. Or situations force u to lead, experiment it. Atleast i wil give it a try.

Still i m "A THEIST" n not ATHEIST!

Still i m "A THEIST" n not ATHEIST!

They say i dnt pay homage to relics,

They say i dnt worship d idol,

They say i m arrogant to defy their rituals,

my heart feels sory fr hungry n i have faith in him,

i have faith dat one day he will have one more bread.

Since i have FAITH!
I feel,

Still i m "A THEIST" n not ATHEIST! -SS
Why shud i bother? I m nt a farmer..

Two farmers a day for the past 15 years, are dying.. Let dem.

I m YOUTH of India!
I m rich. I have a car, a gud job n a paltu puppy. All of us r fully air conditioned.



Main to vaise bhi Mc DONALDS me khata hun. Aur usko kisan se kya matlab?
I have full faith in MONSANTO. And their GM foods.

Moreover i m more interested in Dhoni, Filmy gossips n nite life. You cn read d data below, i dnt care abt it.

*More than 17,000 Indian farmers committed suicide in 2009.

*The yearly total for farmer suicide from 1995 to 2009 bring us to a total of 2,40,000.

*That is, two farmers a day for the past 15 years.
:(:(:(

सिक्का (हास्य-लघुकथा )- स्वरचित पहली कहानी


सिक्का -

बात तब की है जब एक रुपये के सिक्के की मुलाक़ात  1000 रुपये के नोट से हो जाती है | बातचीत कुछ ऐसे हुई -

सिक्का- नमस्ते सर...
नोट- नमस्ते बेटा... और कैसे हो ?
सिक्का- सब ठीक ही है...
नोट- कोई प्रॉब्लम है क्या ?
सिक्का- नहीं जी ...बस... वो...
नोट- कुछ हो तो बताना.. देखेंगे क्या कर सकते हैं..

नोट- वैसे काफी घिस गए हो तुम.. कब के हो?
सिक्का- जी 1990 का.. पर आपका लाल सूट खूब फब रहा है सर ... और ये जो पशुओं की कलाकृतियाँ हैं ...कोट पर.. बहुत सुंदर...
नोट- वेल, थैंक्स..
सिक्का- सर आप कब के हैं?
नोट- 2006, latest generation, एकदम कड़क और शानदार...
सिक्का- सर सुना है 2000 और 5000 के नोट्स भी launch होने जा रहे हैं...
नोट- What rubbish!!! Dont talk like news-paper analysts... अभी ऐसी कोई योजना नहीं है...
सिक्का- वैस सर आप लोग मस्त लेदर के purse में रहते हैं..और क्या तो आपके पड़ोसी 500 और 100 रुपये के .... हमारे तो बस अठन्नी चवन्नी... बस ऐसे वैसे ही हैं | अगर पाँच रूपया आ जाये तो बस हद ही कर देता है... ठिगना ! अगर आप थोड़ी देर के लिए हमारी बस्ती यानि के गुल्लक में चलते तो बहुत अच्छा लगता..
नोट- अभी टाइम नहीं है, वैसे भी चार पाँच सौ सिक्कों  की बदबू मै बर्दाश्त नहीं कर पाता हूँ | तुम लोग गरीब और गंदे आदमियों की करेंसी हो,  you stink!!! मैंने हमेशा रईसों के पर्सों में halt किया है | 100 रुपये से कम के नोट से हाथ मिलाना is just way too down market!!!

नोट- वैसे तुम्हारा कलर भी ठीक ठाक ही लग रहा है...आज कल कहाँ हो ?
सिक्का- थैंक्स सर, मोची के पास...

(तभी अचानक बारिश आ जाती है) 

नोट- उफ्फ्फ .... ये क्या हो रहा है...इतनी तेज़ बारिश!!
सिक्का- सर कहीं छुप जाइये नहीं तो भीग जायेंगे..
नोट- अरे मुझे कुछ नहीं होगा...बहुत बारिशें देखी हैं... Extra coated on thickened paper with waxed glossy surface है....

(नोट पानी में गला जा रहा है, सिक्का जेब से साबुन निकालकर वहीँ बैठ गया और रगड़ रगड़ कर नहाने लगा, कुछ देर बाद पानी बंद....)

नोट- उफ्फ्फ... shit... पूरा गीला कर दिया, कोई बात नहीं... थोड़ी देर में सूख जाऊँगा...
सिक्का- हाँ सर हवा चल रही है, पर कुछ आँधी के भी आसार लग रहे हैं...
नोट- अरे कुछ नहीं होगा, हमारा वेट, पिछले एडिशन से 1.5 गुना ज्यादा है, Don't you worry...... अरे इतनी तेज़ हवा.... मुझे बचाओ , one ! one !!..अबे सिक्के मुझे बचा...

(सिक्का कूदकर लाल भीगे सूट को दबा लेता है, आँधी चली जाती है ...)

नोट- उफ्फ्फ्फ़... पूरा कीचड़ मुझ पर आ गया... आज का तो दिन ही ख़राब है... कुछ नहीं ! पास ही होटल है, वहां तंदूर के पास बैठकर पूरी तरह सूख जाऊँगा..
सिक्का- सर मुझे लगता है ये ठीक नहीं है....
नोट- अरे तुम्हे क्या पता है बड़े होटलों के बारे में, हमेशा मोचियों या भिखारियों के पास रहते हो !
सिक्का- सर ऐसा नहीं है, '95 तक हमें टिप में वेटर को दिया जाता था, हमारा भी रुआब हुआ करता था, हाँ अब 5 रुपये के सिक्के ही टिप योग्य हैं, वो भी बहुत कम... केवल छोटे होटलों में...
नोट-  मैं जा रहा हूँ, चाहो तो मेरे साथ कुछ समय बिता सकते हो, मुझे बुरा नहीं लगेगा |

(नोट तंदूर के ठीक ऊपर पहुँच जाता है )

सिक्का- आप ज़रा संभल के रहें |
नोट- मैं इसमें माहिर हूँ, तुम अपनी सोचो... वाह!!! गर्मी आ रही है, मैं फिर से कड़क हो रहा हूँ....

(तभी रसोइये का हाथ लगा और नोट तंदूर के अंदर जा गिरा...)

नोट-  बचाओ ! बचाओ !! बचाओ !!! .... मुझे बचाओ सिक्के मैं नीचे गिर गया.... सिक्के मुझे बचा...
सिक्का- अभी कुछ करता हूँ सर...

(सिक्का कुछ देर सोचता है फिर....)

सिक्का- मेरे जैसे हज़ारों सिक्कों का जीवन भी आपके जीवन के सामने कम है | मैं आपको ज़रूर बचाऊंगा...

(कहकर सिक्का तंदूर में कूद जाता है.... दो घंटे बाद तंदूर ठंडा हो चुका है, केवल दो चीज़ें शेष हैं- राख और सिक्का  ! )

- स्वरोचिष (07 .01 .2008) :)

"भ्रष्टाचारियों के प्रकार" -- स्वरोचिष "स्वतःवज्र "

भ्रष्टाचारियों के प्रकार-

पहले मैं "भ्रष्टाचार के प्रकार" शीर्षक से लिखना चाहता था क्योंकि तुकबंदी के लिहाज़ से यह बेहतर है लेकिन भ्रष्टाचार का आधार एवं स्रोत भ्रष्टाचारी-गण हैं, साथ ही इनका महत्त्व भ्रष्टाचार से अधिक है- जैसे की बौद्ध धर्म से अधिक महत्व महात्मा बुद्ध का है- शीर्षक बदल दिया है |
 आपने शायद कभी ध्यान दिया हो तो इस बात से सहमत होंगे कि भ्रष्टाचारियों के कई प्रकार होते हैं | भले ही सरकारी मशीनरी में सभी व्यक्ति भ्रष्ट न हों फिर भी इनकी संख्या मायने रखती है | विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचारी एवं उनके चरित्रगत गुण सोदाहरण निम्नवत हैं-
सक्रिय भ्रष्टाचारी- इस श्रेणी में वे लोग आते हैं जिनका व्यापार जग जाहिर है | अगर ये दस रुपये भी रिश्वत लेते हैं तो शाम के स्थानीय अखबार- जिन्हें शायद सम्पादक के अलावा कुछ कथित बुद्धिजीवी भी शाम कि चाय में घोल कर पीते हैं- में खबर 100 रुपये की छप जाती है | ये फिर भी सक्रिय रहते हैं | बेशर्मी से | बिना किसी हिचकिचाहट | उदाहरण- पुलिस विभाग के traffic के सिपाही का ट्रक वाले से 10 रुपये माँगना और न देने पर कम से कम 100 मीटर तक तो अवश्य भागना |
 अक्रिय भ्रष्टाचारी- ये शांत ज्वालामुखी हैं पर इन्हें सुषुप्त मानने कि कीमत महँगी पड़ सकती है | ये प्रायः सामने नहीं आते और कुछ विशेष दूतों- जिन्हें आम बोलचाल कि भाषा में 'दलाल' कहा जाता है और कभी कभी यह शब्द गाली के तौर पर भी प्रयोग किया जा सकता है- के माध्यम से स्व-धर्म का पालन करते हैं| इनके बारे में ज्यादा लिखा तो मेरा यह लेख कहीं नहीं छपेगा |
उदाहरण- सभी बड़े सरकारी अधिकारी जो भ्रष्टाचार को 'आम के अचार' के सामान स्वादिष्ट मानते हैं, और भ्रष्टाचार का चटपटा अचार बनाना जानते हैं, इसी वर्ग कि शोभा बढ़ाते हैं, जैसे उत्तर प्रदेश के कई पूर्व Chief Secretaries . अगर पाठक गण किसी नाम कि उम्मीद कर रहे हैं तो यह उनका "अखण्ड" दुर्भाग्य है और आपको केवल नेत्रों में "नीरा" ही प्राप्त होंगे | ;)
 संतोषी भ्रष्टाचारी- ये लोग "थोड़े से थोड़े ज़्यादा" में ही संतुष्ट जैसा कुछ रहते हैं| इनका सब कुछ सिस्टेमैटिक होता है | मतलब बंधी हुई इनकम !
उदाहरण- सरकारी अध्यापक विद्यालय के बाद, और अतिरिक्त फीस लेकर, अपना अमूल्य समय, उन्ही छात्रों के लिए दिन में दुबारा निकालकर, फिर से, अपने घर पर, सुरमयी शाम में,"कुछ नहीं " पढ़ाते हैं ! मगर बैच की संख्या, जो कि 60 के आस पास है, और घर के साइज़ के हिसाब से दस ज़्यादा है, से, और उससे आने वाली फीस से संतुष्ट रहते हैं| ये नए बैच में छात्रों की संख्या कभी नहीं बढ़ाते | हाँ, एक नया बैच शुरू करने और 60 छात्रों तक पहुंचकर फिर से संतुष्ट होने में इन्हें अतीव संतुष्टि मिलती है | कुल मिलाकर इन्हें संतुष्ट होने से कोई नहीं रोक सकता, जनलोकपाल और अमरीका भी नहीं |
 लालची भ्रष्टाचारी- ये "माँग और आपूर्ति", अंग्रेजी में भोकाल tight करने के लिए बोले तो "Demand and Supply" के सिद्धांत पर काम करते हैं | अगर माँग ज़्यादा है तो आपूर्ति कम कर देते हैं, और उसका उल्टा भी वैसे ही कर सकते हैं | इनकी माँग आपकी आपूर्ति की क्षमता पर निर्भर करती है| ये प्रायः अर्थशास्त्र के अच्छे जानकार होते हैं|
उदाहरण- सरकारी इंजिनियर- कमीशन की गणना में प्रखर बुद्धि ! काबिल गणितज्ञ !! जितनी लम्बी सड़क या पुल बननी है उतना ही लम्बा कमीशन, फिर हर चीज़ में अलग अलग कमीशन, सीमेंट और बालू में अलग, लोहे और मशीनों में अलग, यातायात और कर्मचारियों/ ठेकेदारों में अलग, सब कुछ अलग अलग और समय का फलन- अर्थात समय के आधार पर तय होने वाला....
अन्त में कमीशन इतना लम्बा हो जाता है की लोकार्पण के 23 घंटे बाद ही पुल "अलग-अलग" ! बिल्कुल भूमि के समान्तर अब आप इसे elevated road या चबूतरे की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं |
 धोखेबाज़ भ्रष्टाचारी- ये एक ही काम के लिए दोनों पार्टियों से पैसा खाकर गायब हो जाते हैं और शादी ब्याह की पार्टियों तक में नज़र नहीं आते हैं | संक्षेप में, मुद्रा भी ले लेते हैं और काम तो क्या "ठेंगा" भी नहीं होता !
उदाहरण- व्यक्तिगत नामों की सूची बहुत लम्बी है | सामूहिक रूप से "पुलिस भर्ती घोटाला काण्ड" जो कि सातों काण्डों से अधिक पुण्य देने वाला और व्यापक है, में लिप्त एवं निलंबित अधिकारी गण | वैसे अगर इन्होंने कुछ दलितों का पैसा खाने के बाद भी, उन्हें सिपाही बना दिया होता तो इनका क्या घट जाता? मगर महानुभावों ने "गाँधी-चित्र " तो सबसे धरवा लिया और selection किया "ऊपर" से आई लिस्ट के आधार पर ! तो फिर "दलितों की मसीहा" को तो यह कदम उठाना ही था, अब भुगतो...

अवसरवादी भ्रष्टाचारी- ये लोग आदमी की विपरीत परिस्थितियों एवं मुसीबतों को अवसर की तरह ग्रहण करते हैं | जितना मजबूर आदमी, उतनी लम्बी फीस|
उदाहरण-  कुछ सुयोग्य वकील | किसी परेशान आदमी को राहत देना कोई इनसे सीखे |अगर पूरे रंग में हो तो काले कौवे को भी फेल कर दें | कातिल को मुक़दमे से निकाल तो सकते ही हैं, victim के किसी रिश्तेदार को फंसा भी उतनी ही सफाई से सकते हैं | बस "तारीखों" के लफड़े में खर्चा पानी कुछ फ़ैल सकता है | जब ये मुकदमों के बोझ से कुछ हलके होते हैं तो मुँह में एक रुपये कि पुड़िया ठूँसकर, कचहरी के बाहर कल्लू की चाय की दूकान पर Indo- US Nuclear Deal पर लच्छेदार भाषण पीक रहे होते हैं | वैसे ये कभी कभी सक्रिय भी हो जाते हैं,समझ लीजिये मामला सचमुच सीरियस है | कचहरी गेट पर पाकिस्तान या चीन, अमरीका या अफगानिस्तान, लादेन या मायावती या फिर किसी जज का पुतला फूंककर राष्ट्रीय आन्दोलन की मशाल को जलाये रखते हैं और समय आने पर पुलिस के साथ मारपीट करने से भी पीछे नहीं हटते | आखिर पूरे सरकारी तंत्र में केवल यही बिरादरी, दरोगा से भी ऊंची आवाज़ में, और उसी के थाने के सामने, गालियाँ बककर सत्याग्रह करने की क्षमता और साहस रखती है | काले कोट को सलाम ! ईश्वर तेरी कालिमा बरकरार रखे !!
 डरपोक भ्रष्टाचारी- ये अंतर्मुखी भ्रष्टाचारी होते हैं | रिश्वत का रसगुल्ला मीठा तो बहुत लगता है पर मांगने में डर उससे भी ज्यादा लगता है | सबके सामने सिद्धांत और ईमानदारी के शास्त्रों की बाल्टियाँ भर-भर कर उल्टियाँ करते फिरते हैं लेकिन फाइल में हर बार चौदह ठो ऐतराज़ बताकर पेंडिंग कर देते हैं |
उदाहरण- बैंक मेनेजर प्रजाति के कुछ जीव | क्या आपने किसी बैंक से लोन लिया है? अगर नहीं तो आधी दुनियादारी तो आप स्किप कर ही गए समझिये | जब आप "Easy Loan" का विज्ञापन देखकर बिना तैयारी बैंक जायेंगे तो पहले डेढ़ घंटा तो यह पता करने में लग जाएगा कि मिश्रा जी इंचार्ज हैं या शुक्ला जी | शुक्ला जी से भेंट होगी तो शुरू होगा आवेदन पत्र एवं संलग्नकों को जमा करने का दुरूह कार्य | आपको आवेदन पत्र भरकर जमा करने को बुलाया जायेगा | साथ में एड्रेस प्रूफ, पहिचान पत्र आदि की फोटोकॉपी मांगी जाएगी | एक सौ पन्ने की प्रोजेक्ट रिपोर्ट और फ़र्ज़ी मानचित्र भी माँगा जायेगा | प्रोजेक्ट रिपोर्ट की खासियत यह है कि इसे बनाने वाले C.A. ने भी जब इसे नहीं पढ़ा तो कोई और क्यों इस पचड़े में पड़ेगा? इसलिए कवर पेज अंग्रेजी में विधिवत टाइप कराकर अंदर "मनोहर कहानियां" की दो किश्तें चिपका सकते हैं | लेखक इस बात कि गारंटी लेता है कि आपका लोन इस रिपोर्ट के content से नहीं बल्कि मेनेजर साहब के contentment से sanction होगा !
यह सब फ़ालतू बातें करने के बाद मेरा मन पूछे है कि भाया, सारी गलती है किसकी? ये भ्रष्टाचारी हैं किस ग्रह के प्राणी? अमंगल ग्रह या फिर zoo- पीटर के? दिखने में कैसे होते हैं ? मरे हुए गद्दाफी जैसे या जिंदा इरोम शर्मीला जैसे? क्या कहा !! normal होते हैं और इसी earth के वासी हैं बस अनर्थ के पोषक हैं सर्वथा समर्थ !! हम्म्म्म... बात कुछ कुछ घुस रही है भेजे में... कल्लू मामा के....
भ्रष्टाचार की doze बचपन से ही थोड़ी थोड़ी करके दी जाती है तब बनता है "लायक भ्रष्ट" | बचपन में एक चॉकलेट को अगर भाई के साथ बाँट के खाओ तो पापा मम्मी खुश होते है- देखो कितना ख़याल रख रहा है भाई का...यहाँ पे जड़ है भ्रष्टाचार के वटवृक्ष की | वही सदाचारी बड़ा होकर सरकारी ऑफिस में घुसता है तो उसी उसी सद्गुण, भाई/ भतीजों के साथ मिल बाँटकर गिफ्ट्स, ठेकों या टेंडरों के चॉकलेट को चबा जाने को, हमारे जैसे मूढ़ भ्रष्टाचार की संज्ञा दे डालते हैं, आदर्श के नाम पर और जलन के मारे ! बचपन में करो तो सदाचार बड़े हुए तो भ्रष्टाचार !!!
वस्तुतः सदाचार से भ्रष्टाचार तक का सफ़र smooth है | अंततः यह perception का विषय है | convenience का प्रश्न है | बकौल Einsteinफूफा, relative भी है | अगर आप मेज के "उस ओर" हैं और भ्रष्टाचारी आपकी पूँछ पर पैर रखकर आपको हलाल कर रहा है तो आप सदाचारी हैं, और जनलोकपाल आन्दोलन के घने सक्रिय Facebook एक्टिविस्ट बन सकते हैं | अगर आप मेज के "इस ओर" हैं और माल काट रहे है, चाँदी छान रहे है, सोने पे सो रहे है और सुखी हैं तो आप भैया भ्रष्टाचारी हैं, मस्त types | अब चूँकि हर आदमी कभी न कभी दोनों रोल प्ले करता है, हर आदमी, सदाचारी + भ्रष्टाचारी = सद-भ्रष्टाचारी है |
अब choice आपकी है | जैसे कि Morpheus चाचू ने भतीजे Neo को हरी और लाल गोली चमकाते हुए पूछा था, वैसे ही समय आप से पूछता है- मेज के किस तरफ अपनी बगिया ज्यादा सजाओगे सद-भ्रष्ट ? कुछ भी हो मेज के दोनों तरफ की दुनिया है बड़ी मनो-rum ! जय सद-भ्रष्ट !!
|| इति भ्रष्टपुराणं || ;)

 *** (अक्टूबर 2008 में हमने यह तक यह लेख लिखा था,उपसंहार का नरसंहार आज कर के facebook पे चिपका रहे हैं, कुछ मसाला भी घोल दिया है | हरि अनंत हरि कथा अनंता" की तर्ज पर, इस विषय का कोई अंत नहीं है, जैसे कि 2G,CWG, सुखराम जी, मायावती जी, चिदंबरम-मुखर्जी...| सर्व प्रिय जन-लोकपाल आन्दोलन के बाद यह लेख अधूरा सा है, लेकिन अधूरा ही ठीक है, वरना लम्बा हो जायेगा, जो कि अच्छी बात नहीं है| वैसे ही कोई पढ़ता नहीं यार... हेहेहे )
- स्वरोचिष "स्वतःवज्र " :)

हम रेल चलाते हैं...






हम "भारत की जीवन रेखा",
हमने पूरा भारत देखा,
हिम से सागर नित ले जाते,
हम फासले मिटाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!




















घना कुहासा, या वर्षा रिमझिम,
सूरज तपता सूखा कण-तृण,
सूनामी हो या कठिन युद्ध,
हम अविरल सैर कराते हैं,
हम रेल चलाते हैं!
















वो छोटा सा एक किसान है,
ये उसका गेहूं धान है,
उन्नीस रुपये में गेहूं को,
बाज़ारों तक पहुँचाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!











भारत की सेना परमवीर,
सीमा पर अविरत प्रबल-धीर,
हम उनको संबल देते हैं,
हम रोटी-गन पहुँचाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!












वो श्रमजीवी वो मेहनतकश,
कुछ छोटे बर्तन गढ़ते हैं,
वो बर्तन दिल को छूते हैं,
हम उनके दिल तक जाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!











बूढी माँ को और बाबा को,
तीरथ को जाना होता है,
चारों धामों की यात्रा को,
प्रति -पल सुगम बनाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!





























 गोरी चमड़ी ने बाँट दिया,
कुछ सीमाओं में बाँध दिया,
"समझौता"और "मैत्री" से,
बिछड़ों को पास बुलाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!














"विकसित-भारत" का स्वप्न प्रखर,
उद्योगों पर निर्भर करता,
उस अमित खनिज संपदा को,
उद्योगों से मिलवाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!













यह मंत्री जी की नहीं रेल,
न अफसर-बाबू की है ये,
है 'गैंगमैन' और 'पोर्टर' की,
जो अपना खून जलाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!
 
















हैं गहरे काले पन्ने भी,
इतिहास भी है कुछ मिला जुला,
इन स्याह अँधेरी गलियों में,
कुछ भूलों को दुहराते हैं,
हम रेल चलाते हैं!




















कुछ भ्रष्ट भी हैं ऐ "स्वतःवज्र",
मस्तक पर काले टीके से,
कलंक भी हैं पथभ्रष्ट भी हैं,
हम फिर क्यूँ उन्हें बचाते हैं!
हम रेल चलाते हैं!











हैं दुर्गम पर्वत आगे भी,
हम मानें हम सम्पूर्ण नहीं,
अपनी कमियों और भूलों को,
अन्तर्तम में झुठलाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!











हम बनें नम्र, हो तंत्र सरल,
साहस-अदम्य, विश्वास-अटल,
ऊर्जा नयी, संचेतना-प्रबल,
ऐसी आशा के साथ सभी,
ये मिलकर शपथ उठाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!
हम रेल चलाते हैं!!!























-स्वरोचिष "स्वतःवज्र"
:)
 

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