तुम्हारे शहर कुछ भी यूँ ही नहीं होता
जो दिल में है, ज़ुबां पे नहीं होता
शहर कोतवाल अगर जाग जाता वक़्त पर
जो भी हो रहा है वो नहीं होता
हाथ घड़ी से बँधे हैं वक़्त के ग़ुलाम सब
मैं यहीं हूँ मगर अक्सर यहाँ नहीं होता
मैंने जो भी कहा तुमने गर सुना होता
तो तुमने जो भी कहा है कहा नहीं होता
पंख छोटे, तेज़ तूफाँ से डरा करते अगर
तो परिंदों के लिए ये आसमाँ नहीं होता
और बेबाक़ी से कहता बातें दिल की या ख़ुदा
"बन्द-गला"* शायर ने गर पहना नहीं होता !
* काला जोधपुरी "बन्द-गला"- लोक सेवकों का औपचारिक परिधान, जिसको पहन के गला बन्द हो जाता है ।