मैं चाहता हूँ अब
सारे मेरे दोस्त
मुझे छोड़ने के बाद
भूल भी जाएँ
यादों और बातों के कारवाँ
मौत के बाद भी
क्यूँ चलते रहते हैं
मैं चाहता हूँ अब
सपने जो टूट चुके
कब के
अब बिखर के
धूल भी हो जाएँ
आँखों से शीशे
निकलने के बाद भी
क्यूँ गड़ते रहते हैं
मैं चाहता हूँ अब
मेरा बुझा चेहरा
और मेरी थकी आवाज़
गुम होकर
बदल भी जाये
चेहरे की चीखें और
आवाज़ की झुर्रियां
गुम होकर भी
क्यूँ चलती रहती हैं
मैं चाहता हूँ अब
मेरे गुनाह
मालूम हो उन्हें
और अपने सारे क़हर
भूल ही जाएँ
वो मेरी सजा से
और अपनी वफ़ा से
फिर क्यूँ डरते रहते हैं...
-स्वतःवज्र