नए साल में इतना उजाला हुआ ,
मैंने अँधेरे से पूछा -
कहाँ जाओगे तुम अब ?!!
अँधेरे ने कहा -
चाहे जितने दिये जलें ,
चाहे जितने दीप उगें ,
हमेशा रहूँगा मैं -
हर दिये के नीचे ,
हर दिये के हिस्से कुछ काला अँधेरा है ,
हर दिया अँधेरा साथ लाता है !
अँधेरा खुश था ..
तभी मैंने दो दियों को -
आमने सामने रख दिया !
और दोनों दियों के नीचे ,
जगमग फ़ैल गयी ,
अँधेरा मर चुका था !
हर दिया अकेला है,
अँधेरे से लड़ने को |
साथ दो हो जाएँ तो -
कुछ और बात है |
-स्वरोचिष *स्वतःवज्र*