Monday, 2 January 2012

"दो दिये और एक अँधेरा "



नए साल में इतना उजाला हुआ ,
मैंने अँधेरे से पूछा -
कहाँ जाओगे तुम अब ?!!

अँधेरे ने कहा -
चाहे जितने दिये  जलें ,
चाहे  जितने  दीप उगें ,
हमेशा रहूँगा मैं -
हर दिये  के  नीचे ,

हर दिये के हिस्से कुछ काला अँधेरा है ,
हर दिया अँधेरा साथ लाता है !

अँधेरा खुश था ..
तभी मैंने  दो दियों को -
आमने सामने रख दिया !

और दोनों दियों  के  नीचे ,
जगमग फ़ैल गयी ,
अँधेरा  मर चुका था !

हर  दिया  अकेला है,
अँधेरे  से  लड़ने को |
साथ दो  हो जाएँ तो -
कुछ और  बात है |


-स्वरोचिष *स्वतःवज्र*
 

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