दीवारों पे कागज़ मैंने चिपकाए हैं
कागज़ सारे सटे हुए हैं
मज़बूती देते हैं शायद
अब दीवारें नहीं गिरेंगी ।
छत के कोनों पे फ़ैले
ये काले जाले
मकड़ी वाले
छत को दीवारों से बाँधे
मज़बूती देते हैं शायद
अब दीवारें नहीं गिरेंगी ।
कुछ कलमें बिन ढक्कन की
आवारा सी हैं
कुछ ढक्कन बिन कलमों के
बे मौत मरे हैं
चंद किताबें खुली हुई सी
दिखती हैं यों
जैसे गाँव के खुले रहट हों
काला पानी स्याही का
अब सूख चुका हो
पर्स पड़ा है कोने में
नोट नहीं हैं
छेद है इसमें, छोटा सा एक
सिक्के इसमें खूब भरे हैं
सिग्नल के बूढ़े बाबा के
बोरे जैसा
पर्स पड़ा है ...
गीले कपड़े, रिसता पानी
फर्श पे शीशा बना रहा है
उस शीशे में पंखे का
वो पंख भी दिखता
जो टेढ़ा है
मेज के नीचे जूते हैं
दो जोड़ी जूते
एक पुराना है
उसकी अब उम्र हुई
उसके फीतों के कोने
अब खुले से हैं
चेहरे पर बारीक झुर्रियां
ठोकर खाकर बड़ी हुई हैं
बीते दिन की
साथ में उसके रखा हुआ है
नया नवेला आज का जूता
सोच रहा है फर्श का पानी
उसकी उम्र कहीं न ले ले
बूढ़े जूते ने फिर बढ़कर
अपने फैले से फीतों में
पानी सारा सोख लिया !
इंसान का क्या है
बस चलता ही जाता है
सफ़र में घिसते
जूते हैं
जैसे कल का दिन भी
तो जूता ही है ना
उम्र के पैर में बँधा हुआ
वो कल का जूता
पूरे कमरे में
कपड़े बिखरे हैं ऐसे
एक मुहल्ले में हर मज़हब के बाशिंदे
साथ नहीं रह सकते जैसे
ये सारे कपड़े मेरी इस अलमारी में
हरगिज़ साथ नही रह सकते
बिल्कुल वैसे
सिरहाने की ओर का चद्दर
मटमैला है
पैताने की ओर ये चादर
स्याह सा है
कुछ घिसा हुआ है
इक बाजू पैबंद लगा है
उस बाजू पे फटा हुआ है
जाने क्यूँ नक़्शे की याद
दिला जाता है
सैंतालिस के बाद के हिन्दुस्तान का नक्शा
हर कोने से फटा हुआ है
मेज पे है कुछ पीले कागज़
इनपे मैंने
अपने मन की बात लिखी थी
कुछ कवितायें कल परसों को
कुछ कवितायें
आधी आधी रात लिखी थीं
कुछ ग़ज़लें गहरी बातों की
कुछ नज़्में नाज़ुक यादों की
सोचा करते थे कागज़
अनमोल बिकेंगे
अब खुद को पढ़कर लगता है
इन्फ्लेशन में के दाम बढ़ें तो
बेच ही डालूँ
लिखे हुए कागज़
रद्दी के मोल बिकेंगे
और तुम्हारी
इक तस्वीर लगा रखी है
तुमसे उस दीवार की वो
बेबाक दरारें छुप जाती हैं
आईना भी हैं ये मेरा
उन आँखों के शीशों में
खुद की सूरत भी
दिख जाती है।
इन दो-तीन बहानों से
अब तक याद सजा रखी है
इक तस्वीर लगा रखी है।
कमरा पहली नज़र में मेरी
कथा बताता
इक पैसेंजेर ट्रेन के
जनरल डिब्बे जैसा
कमरा पहली नज़र में अपनी
व्यथा बताता...
*स्वर*