"वो जो भी
मेरे लिखे कलाम
पढता है
मैं शुक्र गुज़ार हूँ
उसका बेश-क़ीमती वक़्त
मुझ पर उधार है"
मेरे लिखे कलाम
पढता है
मैं शुक्र गुज़ार हूँ
उसका बेश-क़ीमती वक़्त
मुझ पर उधार है"
मन की रेत पर नहीं, यहाँ इस चट्टान पे लिखूँगा अब, जब मैं न मिलूं, पढ़ लेना, मेरे स्वर हैं, गुनगुनाओ कभी जब, मुझको महसूस करोगे !
स्वर ♪ ♫ .... | Creative Commons Attribution- Noncommercial License | Dandy Dandilion Designed by Simply Fabulous Blogger Templates