Wednesday, 19 September 2012

फ़ानूस शाम के बिन शम'ए जला करते हैं
पतंगे ठण्डे में बेमौत मरा करते हैं 

है सबको प्यार अपने भाई से पड़ोसी से 
सबके नाखून अनायास बढ़ा करते हैं 

बूढ़े माली की मौत हो गयी इक अरसा हुआ 
अब भी गुलदान में ये फूल दिखा करते हैं

जाने कहाँ से बरसता है कब बरसता है वक़्त 
ये दरिये वक़्त के हर रोज़ बहा करते हैं

हर दफ़ा चोर को लगा है के मैं मुंसिफ हूँ 
हर दफा चोर मुझे खुद से, लगा करते हैं 

कौन कहता है कि मंहगाई है मेरे शायर
हमारे शेर तो सस्ते में बिका करते हैं

*स्वर*
 

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