पाँव सने है
बुरी तरह से
गंदा कीचड़
जात पात का
बिरादरी का
गाढा दलदल
मज़हब का
वो पैना काँटा
धँसा हुआ है
एड़ी में फिर
शुक्र है फिर भी
सिर ऊपर है
सोच रहा है
निकलूँ कैसे
इंसानों में
इसीलिए तो
सिर ऊपर
दे रखा उसने
थोड़ा ऊपर सोच सके गर
दलदल से बाहर आ पाए !