कुछ पुराने अनकहे दोस्त
फिर से याद आ गए
मैं हमेशा सोचा करता
क्यों उन्हें मेरी शक्ल याद हो
मैं उनकी शक्लें
याद करके
सोचा करता हूँ-
पुराने दोस्त
कैंटीन की चाय की तरह
नहीं होते
पुराने दोस्त
पुराने गुड़ की तरह
होते हैं
उनके साथ का जायका
आज भी ज़बान पे
चिपका करता है
वो गुज़र चुके
कारवाँ की
बैठ चुकी धूल
की तरह नहीं होते
वो साये से हैं
बदली में गायब
हो सकते हैं
पर तेज़ धूप में
साथ हैं मेरे
पुराने दोस्त
बीते हुए लम्हों की तरह
नहीं होते
वो यादों से हैं
नीले गुम्बद से आसमान से
मेरे कल पे छाये हैं
वो बरस चुके बादलों की तरह
भी नहीं होते
कुछ दोस्तों की यादें
अब भी बरसा करती हैं
नमी बन के
आँखों के बादल से
ये अलग बात है के
मैं
कभी कभी सोचता हूँ
उनकी शक्लें याद करके
के
क्यों उन्हें मेरी शक्ल याद हो...
और उन सबकी शक्लें
कौंध जाती हैं
ज़हन में मेरे !
-स्वतःवज्र :)