कहीं जातिवाद की जोंकें
हैं
कहीं क्षेत्रवाद के क्षत्रप
कहीं व्यक्तिवाद का विष
मानव
कहीं वंशवाद के तक्षक
इस भक्षक व्यूह को तोड़ सके
बस अभयवाद इक रक्षक
जो सबको धूल चटा दे
वादों से वाद मिटा दे
कृष्ण कोठरी में रहकर
जो निर्विवाद है
वह अभयवाद है !
सत्तावन
से सैंतालिस तक
संघर्ष हुआ प्रतिवर्ष हुआ
कुछ शीश कटे कुछ रक्त बहा
यह पीढ़ी सब कुछ भूल चुकी
अब किसे याद है ?
जो सब कुछ स्मरण करा दे
नस नस में आग बहा दे
वह अभयवाद है !
यह शाश्वत "स्वर"
यह मौन मुखर
यह विप्लव ध्वनि
यह शक्ति प्रखर
यह प्रलयनाद है
यह अभयवाद है !