Saturday, 28 January 2012

दिल से निकले तो सही...



यहाँ वो नहीं है ना सही
उसकी कमी बैठी हुई है
 इक मेरा एहसास काफ़ी है
दिल से निकले तो सही...

परिंदे भूखे है भूखे सही
जीने को इनके, अब्र में
 इक ऊँचा परवाज़ काफ़ी है
दिल से निकले तो सही...

के चिटके हैं शहर के 
सारे  शीशे बिन पत्थर 
 इक मेरी आवाज़ काफ़ी है
दिल से निकले तो सही...

बज़्म-ए-मौसीक़ी में 
कोई साज़ न हो न सही 
 इक मेरा वो राज़ काफ़ी है
दिल से निकले तो सही...

पीठ में खंजर गड़ा हो
फ़िक्र-ए-अंजाम हो न हो
 इक मेरा आग़ाज़ काफ़ी है
दिल से निकले तो सही...



(अब्र- बादल, परवाज़- उड़ान, बज़्म-ए-मौसीक़ी- संगीत की महफ़िल, आग़ाज़- शुरुआत, साज़- वाद्य यंत्र  )

-स्वतःवज्र 
 

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