Sunday, 25 December 2011

हम रेल चलाते हैं...






हम "भारत की जीवन रेखा",
हमने पूरा भारत देखा,
हिम से सागर नित ले जाते,
हम फासले मिटाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!




















घना कुहासा, या वर्षा रिमझिम,
सूरज तपता सूखा कण-तृण,
सूनामी हो या कठिन युद्ध,
हम अविरल सैर कराते हैं,
हम रेल चलाते हैं!
















वो छोटा सा एक किसान है,
ये उसका गेहूं धान है,
उन्नीस रुपये में गेहूं को,
बाज़ारों तक पहुँचाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!











भारत की सेना परमवीर,
सीमा पर अविरत प्रबल-धीर,
हम उनको संबल देते हैं,
हम रोटी-गन पहुँचाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!












वो श्रमजीवी वो मेहनतकश,
कुछ छोटे बर्तन गढ़ते हैं,
वो बर्तन दिल को छूते हैं,
हम उनके दिल तक जाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!











बूढी माँ को और बाबा को,
तीरथ को जाना होता है,
चारों धामों की यात्रा को,
प्रति -पल सुगम बनाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!





























 गोरी चमड़ी ने बाँट दिया,
कुछ सीमाओं में बाँध दिया,
"समझौता"और "मैत्री" से,
बिछड़ों को पास बुलाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!














"विकसित-भारत" का स्वप्न प्रखर,
उद्योगों पर निर्भर करता,
उस अमित खनिज संपदा को,
उद्योगों से मिलवाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!













यह मंत्री जी की नहीं रेल,
न अफसर-बाबू की है ये,
है 'गैंगमैन' और 'पोर्टर' की,
जो अपना खून जलाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!
 
















हैं गहरे काले पन्ने भी,
इतिहास भी है कुछ मिला जुला,
इन स्याह अँधेरी गलियों में,
कुछ भूलों को दुहराते हैं,
हम रेल चलाते हैं!




















कुछ भ्रष्ट भी हैं ऐ "स्वतःवज्र",
मस्तक पर काले टीके से,
कलंक भी हैं पथभ्रष्ट भी हैं,
हम फिर क्यूँ उन्हें बचाते हैं!
हम रेल चलाते हैं!











हैं दुर्गम पर्वत आगे भी,
हम मानें हम सम्पूर्ण नहीं,
अपनी कमियों और भूलों को,
अन्तर्तम में झुठलाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!











हम बनें नम्र, हो तंत्र सरल,
साहस-अदम्य, विश्वास-अटल,
ऊर्जा नयी, संचेतना-प्रबल,
ऐसी आशा के साथ सभी,
ये मिलकर शपथ उठाते हैं,
हम रेल चलाते हैं!
हम रेल चलाते हैं!!!























-स्वरोचिष "स्वतःवज्र"
:)
 

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