...और चंदा मुस्कुरा दी !
सुबह बस होने को थी...
चंदा के जाने का वक़्त था,
सारी रात चंदा के साथ थे, फिर भी वो बातें पूरी न हो सकीं जो आँखों से होती हैं ...
चंदा की अलसाई ऑंखें सिन्दूरी क्षितिज से ज़्यादा सुर्ख थीं...
और सारे चेहरे पे काले बाल फैले थे जैसे सुबह हवा में उड़ते काले पक्षियों की लम्बी कतारें...
हमने कहा- ए जी चंदा ! हमें अकेला छोड़ के मत जाओ !
दो तारे ही दे दो...
तुम्हारी याद में दिन कट जायेगा और रात में वो तारे फिर से तुम्हारे आँचल में पिरो देंगे !
चंदा बोली- मैं तो चली नहाने...
इस विशाल सागर के उस दूर छोर पे |
तारे कहाँ हैं ? सब चले गए...
इस किनारे की रेत उठा लो...
हम मायूस थे |
चंदा जा रही थी, उसका झिलमिल आँचल सागर में घुल रहा था |
हमने उगते सूरज की रोशनी से कहा हमें कुछ रेत उठाने दो !
पर ये क्या !
रेत में दो सफ़ेद फूल थे !!
ये कहाँ से आये !!!
ज़रूर ये तारे हैं जो चंदा ने छिपा दिए थे...
हमने चंदा को दूर उस पार जाते देखा और उन फूलों को चूम लिया |
चंदा की आँखों से आँखें मिलीं ...
और चंदा मुस्कुरा दी !
:)
-स्वरोचिष "स्वतःवज्र"
सुबह बस होने को थी...
चंदा के जाने का वक़्त था,
सारी रात चंदा के साथ थे, फिर भी वो बातें पूरी न हो सकीं जो आँखों से होती हैं ...
चंदा की अलसाई ऑंखें सिन्दूरी क्षितिज से ज़्यादा सुर्ख थीं...
और सारे चेहरे पे काले बाल फैले थे जैसे सुबह हवा में उड़ते काले पक्षियों की लम्बी कतारें...
हमने कहा- ए जी चंदा ! हमें अकेला छोड़ के मत जाओ !
दो तारे ही दे दो...
तुम्हारी याद में दिन कट जायेगा और रात में वो तारे फिर से तुम्हारे आँचल में पिरो देंगे !
चंदा बोली- मैं तो चली नहाने...
इस विशाल सागर के उस दूर छोर पे |
तारे कहाँ हैं ? सब चले गए...
इस किनारे की रेत उठा लो...
हम मायूस थे |
चंदा जा रही थी, उसका झिलमिल आँचल सागर में घुल रहा था |
हमने उगते सूरज की रोशनी से कहा हमें कुछ रेत उठाने दो !
पर ये क्या !
रेत में दो सफ़ेद फूल थे !!
ये कहाँ से आये !!!
ज़रूर ये तारे हैं जो चंदा ने छिपा दिए थे...
हमने चंदा को दूर उस पार जाते देखा और उन फूलों को चूम लिया |
चंदा की आँखों से आँखें मिलीं ...
और चंदा मुस्कुरा दी !
:)
-स्वरोचिष "स्वतःवज्र"