Monday, 26 December 2011

" प्रेम का सौंदर्य " दूरी में ही है - चंदा से चौथी मुलाक़ात ! :)



आज चंदा कुछ नाराज़ सी थी ,
सोलह में से केवल आठ कलाएं !
केवल  आठ  सिंगार !!
आधा चेहरा काले घूँघट में  ढक रखा था |

ए जी चंदा ! लो हम आ गए , देखो न इधर !

चंदा बोली - हम नाराज़  हैं, क्यूंकि  तुम्हारे आँगन की वो "रात की रानी" तुम्हे छूती है...  वह पास जो है इतनी !

ओह चंदा !

मगर "रात की रानी"  हरदम साथ तो नहीं -
पास हो के भी नहीं ! 
वो  आंगन में  इतनी पास  है  कि हरदम दूर है ,
दूरी के  कारण ही तुम हरदम  साथ  हो ...हर रात !
जहाँ भी  गए  हम  इस दुनिया में ,
मेरी चंदा  सामने थी  क्यूंकि  तुम  दूर  थी !

दूरी  में   ही  प्रेम की  असली अनुभूति है,

प्रेम स्पर्श में  नहीं -
स्पर्श  की  अनुभूति  में  है  |


चंदा ! अनुभूति स्पर्श  में  नहीं ,
वह  तो  स्पर्श  की  उम्मीद में  है .. हर  बार ..

सौंदर्य-प्रेम  के  लिए पास  आना ज़रूरी हो  सकता है ,
लेकिन "  प्रेम  का  सौंदर्य "  दूरी में  ही  है |
हमारे बीच की  ये पौने चार लाख किलोमीटर की  दूरियाँ भी  कुछ नहीं ,
तुम्हारी चांदनी की  सफ़ेद चमक यहाँ भी  पुरज़ोर है  चंदा !

शरारती चंदा  ने हलकी अंगड़ाई लेते हुए ,
एक मुट्ठी गीली चांदनी  और एक  मुट्ठी  ठंडी पवन फेंकी .. हमारी ओर..

और चंदा  मुस्कुरा दी !




- स्वरोचिष "स्वतःवज्र "
(26-12-10)

 

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