Sunday 25 December 2011

"भ्रष्टाचारियों के प्रकार" -- स्वरोचिष "स्वतःवज्र "

भ्रष्टाचारियों के प्रकार-

पहले मैं "भ्रष्टाचार के प्रकार" शीर्षक से लिखना चाहता था क्योंकि तुकबंदी के लिहाज़ से यह बेहतर है लेकिन भ्रष्टाचार का आधार एवं स्रोत भ्रष्टाचारी-गण हैं, साथ ही इनका महत्त्व भ्रष्टाचार से अधिक है- जैसे की बौद्ध धर्म से अधिक महत्व महात्मा बुद्ध का है- शीर्षक बदल दिया है |
 आपने शायद कभी ध्यान दिया हो तो इस बात से सहमत होंगे कि भ्रष्टाचारियों के कई प्रकार होते हैं | भले ही सरकारी मशीनरी में सभी व्यक्ति भ्रष्ट न हों फिर भी इनकी संख्या मायने रखती है | विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचारी एवं उनके चरित्रगत गुण सोदाहरण निम्नवत हैं-
सक्रिय भ्रष्टाचारी- इस श्रेणी में वे लोग आते हैं जिनका व्यापार जग जाहिर है | अगर ये दस रुपये भी रिश्वत लेते हैं तो शाम के स्थानीय अखबार- जिन्हें शायद सम्पादक के अलावा कुछ कथित बुद्धिजीवी भी शाम कि चाय में घोल कर पीते हैं- में खबर 100 रुपये की छप जाती है | ये फिर भी सक्रिय रहते हैं | बेशर्मी से | बिना किसी हिचकिचाहट | उदाहरण- पुलिस विभाग के traffic के सिपाही का ट्रक वाले से 10 रुपये माँगना और न देने पर कम से कम 100 मीटर तक तो अवश्य भागना |
 अक्रिय भ्रष्टाचारी- ये शांत ज्वालामुखी हैं पर इन्हें सुषुप्त मानने कि कीमत महँगी पड़ सकती है | ये प्रायः सामने नहीं आते और कुछ विशेष दूतों- जिन्हें आम बोलचाल कि भाषा में 'दलाल' कहा जाता है और कभी कभी यह शब्द गाली के तौर पर भी प्रयोग किया जा सकता है- के माध्यम से स्व-धर्म का पालन करते हैं| इनके बारे में ज्यादा लिखा तो मेरा यह लेख कहीं नहीं छपेगा |
उदाहरण- सभी बड़े सरकारी अधिकारी जो भ्रष्टाचार को 'आम के अचार' के सामान स्वादिष्ट मानते हैं, और भ्रष्टाचार का चटपटा अचार बनाना जानते हैं, इसी वर्ग कि शोभा बढ़ाते हैं, जैसे उत्तर प्रदेश के कई पूर्व Chief Secretaries . अगर पाठक गण किसी नाम कि उम्मीद कर रहे हैं तो यह उनका "अखण्ड" दुर्भाग्य है और आपको केवल नेत्रों में "नीरा" ही प्राप्त होंगे | ;)
 संतोषी भ्रष्टाचारी- ये लोग "थोड़े से थोड़े ज़्यादा" में ही संतुष्ट जैसा कुछ रहते हैं| इनका सब कुछ सिस्टेमैटिक होता है | मतलब बंधी हुई इनकम !
उदाहरण- सरकारी अध्यापक विद्यालय के बाद, और अतिरिक्त फीस लेकर, अपना अमूल्य समय, उन्ही छात्रों के लिए दिन में दुबारा निकालकर, फिर से, अपने घर पर, सुरमयी शाम में,"कुछ नहीं " पढ़ाते हैं ! मगर बैच की संख्या, जो कि 60 के आस पास है, और घर के साइज़ के हिसाब से दस ज़्यादा है, से, और उससे आने वाली फीस से संतुष्ट रहते हैं| ये नए बैच में छात्रों की संख्या कभी नहीं बढ़ाते | हाँ, एक नया बैच शुरू करने और 60 छात्रों तक पहुंचकर फिर से संतुष्ट होने में इन्हें अतीव संतुष्टि मिलती है | कुल मिलाकर इन्हें संतुष्ट होने से कोई नहीं रोक सकता, जनलोकपाल और अमरीका भी नहीं |
 लालची भ्रष्टाचारी- ये "माँग और आपूर्ति", अंग्रेजी में भोकाल tight करने के लिए बोले तो "Demand and Supply" के सिद्धांत पर काम करते हैं | अगर माँग ज़्यादा है तो आपूर्ति कम कर देते हैं, और उसका उल्टा भी वैसे ही कर सकते हैं | इनकी माँग आपकी आपूर्ति की क्षमता पर निर्भर करती है| ये प्रायः अर्थशास्त्र के अच्छे जानकार होते हैं|
उदाहरण- सरकारी इंजिनियर- कमीशन की गणना में प्रखर बुद्धि ! काबिल गणितज्ञ !! जितनी लम्बी सड़क या पुल बननी है उतना ही लम्बा कमीशन, फिर हर चीज़ में अलग अलग कमीशन, सीमेंट और बालू में अलग, लोहे और मशीनों में अलग, यातायात और कर्मचारियों/ ठेकेदारों में अलग, सब कुछ अलग अलग और समय का फलन- अर्थात समय के आधार पर तय होने वाला....
अन्त में कमीशन इतना लम्बा हो जाता है की लोकार्पण के 23 घंटे बाद ही पुल "अलग-अलग" ! बिल्कुल भूमि के समान्तर अब आप इसे elevated road या चबूतरे की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं |
 धोखेबाज़ भ्रष्टाचारी- ये एक ही काम के लिए दोनों पार्टियों से पैसा खाकर गायब हो जाते हैं और शादी ब्याह की पार्टियों तक में नज़र नहीं आते हैं | संक्षेप में, मुद्रा भी ले लेते हैं और काम तो क्या "ठेंगा" भी नहीं होता !
उदाहरण- व्यक्तिगत नामों की सूची बहुत लम्बी है | सामूहिक रूप से "पुलिस भर्ती घोटाला काण्ड" जो कि सातों काण्डों से अधिक पुण्य देने वाला और व्यापक है, में लिप्त एवं निलंबित अधिकारी गण | वैसे अगर इन्होंने कुछ दलितों का पैसा खाने के बाद भी, उन्हें सिपाही बना दिया होता तो इनका क्या घट जाता? मगर महानुभावों ने "गाँधी-चित्र " तो सबसे धरवा लिया और selection किया "ऊपर" से आई लिस्ट के आधार पर ! तो फिर "दलितों की मसीहा" को तो यह कदम उठाना ही था, अब भुगतो...

अवसरवादी भ्रष्टाचारी- ये लोग आदमी की विपरीत परिस्थितियों एवं मुसीबतों को अवसर की तरह ग्रहण करते हैं | जितना मजबूर आदमी, उतनी लम्बी फीस|
उदाहरण-  कुछ सुयोग्य वकील | किसी परेशान आदमी को राहत देना कोई इनसे सीखे |अगर पूरे रंग में हो तो काले कौवे को भी फेल कर दें | कातिल को मुक़दमे से निकाल तो सकते ही हैं, victim के किसी रिश्तेदार को फंसा भी उतनी ही सफाई से सकते हैं | बस "तारीखों" के लफड़े में खर्चा पानी कुछ फ़ैल सकता है | जब ये मुकदमों के बोझ से कुछ हलके होते हैं तो मुँह में एक रुपये कि पुड़िया ठूँसकर, कचहरी के बाहर कल्लू की चाय की दूकान पर Indo- US Nuclear Deal पर लच्छेदार भाषण पीक रहे होते हैं | वैसे ये कभी कभी सक्रिय भी हो जाते हैं,समझ लीजिये मामला सचमुच सीरियस है | कचहरी गेट पर पाकिस्तान या चीन, अमरीका या अफगानिस्तान, लादेन या मायावती या फिर किसी जज का पुतला फूंककर राष्ट्रीय आन्दोलन की मशाल को जलाये रखते हैं और समय आने पर पुलिस के साथ मारपीट करने से भी पीछे नहीं हटते | आखिर पूरे सरकारी तंत्र में केवल यही बिरादरी, दरोगा से भी ऊंची आवाज़ में, और उसी के थाने के सामने, गालियाँ बककर सत्याग्रह करने की क्षमता और साहस रखती है | काले कोट को सलाम ! ईश्वर तेरी कालिमा बरकरार रखे !!
 डरपोक भ्रष्टाचारी- ये अंतर्मुखी भ्रष्टाचारी होते हैं | रिश्वत का रसगुल्ला मीठा तो बहुत लगता है पर मांगने में डर उससे भी ज्यादा लगता है | सबके सामने सिद्धांत और ईमानदारी के शास्त्रों की बाल्टियाँ भर-भर कर उल्टियाँ करते फिरते हैं लेकिन फाइल में हर बार चौदह ठो ऐतराज़ बताकर पेंडिंग कर देते हैं |
उदाहरण- बैंक मेनेजर प्रजाति के कुछ जीव | क्या आपने किसी बैंक से लोन लिया है? अगर नहीं तो आधी दुनियादारी तो आप स्किप कर ही गए समझिये | जब आप "Easy Loan" का विज्ञापन देखकर बिना तैयारी बैंक जायेंगे तो पहले डेढ़ घंटा तो यह पता करने में लग जाएगा कि मिश्रा जी इंचार्ज हैं या शुक्ला जी | शुक्ला जी से भेंट होगी तो शुरू होगा आवेदन पत्र एवं संलग्नकों को जमा करने का दुरूह कार्य | आपको आवेदन पत्र भरकर जमा करने को बुलाया जायेगा | साथ में एड्रेस प्रूफ, पहिचान पत्र आदि की फोटोकॉपी मांगी जाएगी | एक सौ पन्ने की प्रोजेक्ट रिपोर्ट और फ़र्ज़ी मानचित्र भी माँगा जायेगा | प्रोजेक्ट रिपोर्ट की खासियत यह है कि इसे बनाने वाले C.A. ने भी जब इसे नहीं पढ़ा तो कोई और क्यों इस पचड़े में पड़ेगा? इसलिए कवर पेज अंग्रेजी में विधिवत टाइप कराकर अंदर "मनोहर कहानियां" की दो किश्तें चिपका सकते हैं | लेखक इस बात कि गारंटी लेता है कि आपका लोन इस रिपोर्ट के content से नहीं बल्कि मेनेजर साहब के contentment से sanction होगा !
यह सब फ़ालतू बातें करने के बाद मेरा मन पूछे है कि भाया, सारी गलती है किसकी? ये भ्रष्टाचारी हैं किस ग्रह के प्राणी? अमंगल ग्रह या फिर zoo- पीटर के? दिखने में कैसे होते हैं ? मरे हुए गद्दाफी जैसे या जिंदा इरोम शर्मीला जैसे? क्या कहा !! normal होते हैं और इसी earth के वासी हैं बस अनर्थ के पोषक हैं सर्वथा समर्थ !! हम्म्म्म... बात कुछ कुछ घुस रही है भेजे में... कल्लू मामा के....
भ्रष्टाचार की doze बचपन से ही थोड़ी थोड़ी करके दी जाती है तब बनता है "लायक भ्रष्ट" | बचपन में एक चॉकलेट को अगर भाई के साथ बाँट के खाओ तो पापा मम्मी खुश होते है- देखो कितना ख़याल रख रहा है भाई का...यहाँ पे जड़ है भ्रष्टाचार के वटवृक्ष की | वही सदाचारी बड़ा होकर सरकारी ऑफिस में घुसता है तो उसी उसी सद्गुण, भाई/ भतीजों के साथ मिल बाँटकर गिफ्ट्स, ठेकों या टेंडरों के चॉकलेट को चबा जाने को, हमारे जैसे मूढ़ भ्रष्टाचार की संज्ञा दे डालते हैं, आदर्श के नाम पर और जलन के मारे ! बचपन में करो तो सदाचार बड़े हुए तो भ्रष्टाचार !!!
वस्तुतः सदाचार से भ्रष्टाचार तक का सफ़र smooth है | अंततः यह perception का विषय है | convenience का प्रश्न है | बकौल Einsteinफूफा, relative भी है | अगर आप मेज के "उस ओर" हैं और भ्रष्टाचारी आपकी पूँछ पर पैर रखकर आपको हलाल कर रहा है तो आप सदाचारी हैं, और जनलोकपाल आन्दोलन के घने सक्रिय Facebook एक्टिविस्ट बन सकते हैं | अगर आप मेज के "इस ओर" हैं और माल काट रहे है, चाँदी छान रहे है, सोने पे सो रहे है और सुखी हैं तो आप भैया भ्रष्टाचारी हैं, मस्त types | अब चूँकि हर आदमी कभी न कभी दोनों रोल प्ले करता है, हर आदमी, सदाचारी + भ्रष्टाचारी = सद-भ्रष्टाचारी है |
अब choice आपकी है | जैसे कि Morpheus चाचू ने भतीजे Neo को हरी और लाल गोली चमकाते हुए पूछा था, वैसे ही समय आप से पूछता है- मेज के किस तरफ अपनी बगिया ज्यादा सजाओगे सद-भ्रष्ट ? कुछ भी हो मेज के दोनों तरफ की दुनिया है बड़ी मनो-rum ! जय सद-भ्रष्ट !!
|| इति भ्रष्टपुराणं || ;)

 *** (अक्टूबर 2008 में हमने यह तक यह लेख लिखा था,उपसंहार का नरसंहार आज कर के facebook पे चिपका रहे हैं, कुछ मसाला भी घोल दिया है | हरि अनंत हरि कथा अनंता" की तर्ज पर, इस विषय का कोई अंत नहीं है, जैसे कि 2G,CWG, सुखराम जी, मायावती जी, चिदंबरम-मुखर्जी...| सर्व प्रिय जन-लोकपाल आन्दोलन के बाद यह लेख अधूरा सा है, लेकिन अधूरा ही ठीक है, वरना लम्बा हो जायेगा, जो कि अच्छी बात नहीं है| वैसे ही कोई पढ़ता नहीं यार... हेहेहे )
- स्वरोचिष "स्वतःवज्र " :)
 

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