Tuesday 27 December 2011

क ख ग...यानि की "कछुआ-खरगोश-गाथा" 2.0




(......'खरगोश का सोना 'कछुए के लिए खरा सोना बन गया, 
और  फिर कछुए ने जो कुछ भी छुआ सब सोना बन गया .............)
 



 मैं गुलज़ार साहब का  fan हूँ, सोचा इस बार मैं भी कहानी flashback  से शुरू करूँ .... 

तो flashback शुरू... 

धूल इतनी थी हवा में की लगभग अँधेरा हो गया था | नासा को लगा पूर्ण सूर्य ग्रहण है, पक्षियों को लगा रात हो गयी है | यह धूल दोनों के पैरों से उड़ रही थी मानो ज़मीन का 'समुद्र मंथन' हो | खरगोश इस बार फिर कछुए से काफी आगे भाग रहा था | उसके माथे पर पसीना था और आँखें लाल! 
ओहो! सेंटी मत हो.. खरगोश की आँखें लाल ही होती हैं ;) 
आपको पता होना चाहिए कुछ चीज़ें लाल ही होती हैं हमेशा, जैसे की माँ का लाल, गु-लाल  और रामलाल |ओ तेरी तो ! रामलाल को नहीं जानते क्या बांगड़ू ?? अरे ! यह PSPO नहीं जानता | भईया यह वही हैं शोले के रामू काका- "ठाकुर साहब की गवर्नेस"! 

वैसे आग के शोले भी लाल होते हैं | बुरे लेखक की खसुसियात यह होती है की अगर वह topic से भटक जाये तो भी पब्लिक बुरा नहीं मानती और पब्लिक बुरा मान भी जाये तो बुरा लेखक अपनी गलती नहीं मानता | यहाँ मैं अपनी नहीं बुरे लेखकों की तारीफ़ कर रहा हूँ |


हाँ तो कहाँ थे हम लोग? हाँ,  खरगोश की लाल आँखों में थे और कछुए का डिस्क्रिप्शन पेंडिंग था | तो कच्छप अवतार से आज तक, हमेशा की तरह यहाँ भी कछुआ साधारण ही था | महापुरुष साधारण होते हैं और इसी की आड़ में हर साधारण आदमी खुद को महापुरुष समझने लगता है | यह मेरा खुद का अनुभव है, खुद मैंने कई बार अपने को महापुरुष महसूस किया  है | आप लोग बार-बार "बाबा आ-राम देव" पे क्यूँ पहुँच जाते हैं भाई ;)

खरगोश और कछुआ दोनों एक बार फिर रेस में थे- 10 साल बाद | काफी  कुछ बदल चुका था | पहली रेस के बाद दोनों की लाइफ बदल गयी थी लेकिन वाइफ वही थी | कछुआ जीता था | वह स्लो था लेकिन steady था | ऐसे लोगों को bureaucracy आत्मसात कर लेती है क्यूँ की ऐसे लोग bureaucracy को आत्मसात कर चुके होते हैं- अन्तर्तम में...जैसे-

***जब नहीं आये थे तुम...***
***तब भी मेरे साथ थे तुम***

देव फिल्म का गाना है | करीना माता जी को गाने का शौक चर्राया था | म्यूजिक डायरेक्टर आदेश श्रीवास्तव भुगत रहे हैं आज तक |
मेरे जैसा असाधारण लेखक जब भी टॉपिक से भटकता  है तो कुछ सोच के- तो कहाँ थे हम लोग? हाँ, slow and steady कछुए पर लदे थे | कछुआ sports quota में सरकारी दामाद बन गया था, रेल मंत्रालय में बाबू | कछुआ रेल का ad करता था- भारतीय रेल- आपकी भरोसे "मंद" साथी |  

'खरगोश का सोना' कछुए के लिए खरा सोना बन गया, 
फिर कछुए ने जो कुछ भी छुआ सब सोना बन गया | 

Midas Touch, Golden Touch | अब दोनों अपने-अपने सोने में खुश थे | कछुआ और भी कई ads कर रहा था- Adidas- Kalidas, Nike, Pepsi... and what not!

उधर कुछ Ad खरगोश को कर रहे थे- नींद की  दवा और Revital| युवराज सन्यास ले चुका था और खरगोश ने उसे सीमलेस्ली रिप्लेस किया था, बिलकुल मस्का! किसी  को पता भी नहीं चला | साँप भी मर गया और लाठी से सीढ़ी बना के सांप सीढ़ी खेल ली | जॉब भी मिल ही गयी थी- Re-Lions Broad Band, जिसकी band पहले से बजी थी, खरगोश और बजाता जा रहा था, बुरी तरह से...  इससे केवल एक बात साबित होती थी की Re-Lions Broad Band हो या खरगोश केवल तेजू बनने से काम नहीं चलता... You have to impart it the final Golden Touch.

रेस के कारण और background -
 दो सवाल सबके सामने मुंह और झोला बाए खड़े थे-

एक, MI -4 में "A-nil Cup- Poor" ने इतनी निर्ममता से टॉम क्रूज़ को sideline  क्यों किया?
और दूसरा, यह रेस दुबारा क्यों हो रही थी?

मैं इतना नासमझ लेखक भी नहीं कि पहले सवाल में भटक के बार बार खुद को पाठकों के निम्न स्तर तक ले आऊं ;) lets take up the second one.


इस "पुनश्च रेस" के होने के कई कारण थे | कई आयाम थे; कई निहितार्थ थे; कई बांगड़ुओं  के अपने अपने स्वार्थ थे !

चार मुख्य कारण थे -
1. ओलम्पिक एस्सोसिअशन 
2. Re-Lions Broad Band
3. अमरीका और
4. Boxer भाई!

 जिनका विवरण इस प्रकार से है-

1. ओलम्पिक एस्सोसिअशन-
यह कारण सांकेतिक था | यह बस मुखौटा था इसकी आड़ में अन्य तीन कारण फल-फूल-पिचक-बेहिचक रहे थे | "सु-race अलमारी" सब मैनेज किये हुए थे सालों से... ( सालों शब्द गाली के रूप में नहीं है यहाँ !)
 


2. Re-Lions Broad Band-
दूसरा कारण इकॉनोमिक था - "ऑर-thick" था काफी | Re-Lions  ने सोचा अगर खरगोश जीत जाये तो turn around किया जा सकता है industry  में-
***"देने वाला जब भी DATA , DATA  छप्पर फाड़ के " ***

खरगोश भी एक अदद-मदद के इंतज़ार में था जिसे प्रमोशन कहते हैं, वह मान गया रेस के लिए; दिल पर छप्पर रख के जिसे उसे खुद फाड़ना था |

3. अमरीका-
 तीसरा और मुख्य कारण हमेशा से ही अमरीका ही रहा है और रहेगा भी | World War से लेके UN  तक, IMF से Recession तक, वियतनाम से ईराक तक, अफगानिस्तान से लीबिया तक, ओसामा से ओबामा तक,  Mc Donald से Monsanto तक, Human Rights से Guantanamo Bay तक, George "WMD"- WEapons Of Mass Destruction- Bush से Nobel Peace Prize विनर ओबामा तक, "Happy Capitalism" से  "Health Socialism" तक, हिरोशिमा से NPT तक !! यही Uncle  SAM  है सब जगह, घनी हरयाणवी में बोलें तो साड्डा चाचा चौधरी !
दूसरे के फट्टे में टांग अडाने कि हैसियत, हिस्ट्री, हरामखोरी, adventure, भोकाल, और आदत के चलते अमरीका को तो आना ही था बीच में... 

अमरीका के लिए यह एक  "balancing  stunt  " था चीन के 'खिल-laugh' चीन के सफल ओलम्पिक 2008 की मिठास में फटा हुआ दूध डालने का सु-नेहरा-अवसर| अमरीका ने पैसा पानी की तरह बहाया और ऐसा बहाया  की "Common-Wealth" Games भी पानी भरे | लगे हाथों CWG पर भी चर्चा हो जाये | CWG का उद्देश्य जैसा की उसका नाम था- "Common-Wealth"अर्थात Wealth को  Common करना था ! इसका mascot था - Shera जो की "Share" शब्द से बना है - means to share the "Common-Wealth. 

4. Boxer भाई- 
Boxer भाई चौथा कारण था | वह कथित तौर पर  दुबई में रहता था  | वह  रेस के परिणाम से  सीधा प्रभावित होनेवाला था  इसीलिए वह  रेस के परिणाम को  सीधे प्रभावित करने वाला था , जैसे की  BCCI  aur ICC  करते हैं कथित  तौर  पर | 
यही Newton फुफ्फ़ा जी का तीसरा नियम है - क्रिया प्रतिक्रिया का नियम | छठवी कक्षा में  कुछ पढ़े होते तो यहाँ Newton फुफ्फ़ा जी के  नाम  पे बुक्का नहीं फाड़ते हुँह .... 
अनभिज्ञ पाठकों के  चलते पक्के से  पक्का लेखक भी  बार बार भटक जाता है |  हाय राम ! हाँ तो  कहाँ थे हम तुम ? ह्म्म्मम्म चौथे कारण की  चीर फाड़ कर रहे थे |

 
Boxer भाई वही सर्वशक्तिमान, सर्वमान्य एवं सर्वज्ञ सज्जन हैं जिनका बोरीवली में बेटिंग का अड्डा और कांदीवली में डांस बार है | इनका धंधा मलिहाबाद से मकाऊ तक, हावड़ा से हवाना तक और विरार से वेगस तक समुद्रगुप्त के विस्तृत राज्य की तरह फैला है और गुप्त भी है ! Boxer भाई का समुचित व समग्र वर्णन अलग से "Boxer  चालीसा" के रूप में प्रकाशित किया जाएगा |
इवेंट हॉट था इसलिए फिक्सिंग की भारी ज़िम्मेदारी Boxer भाई ने ले रखी थी | यह तय हुआ की कछुए को हारना ही होगा, उसी में प्राणिमात्र का कल्याण है |

खेलों के माध्यम से मानव जाति का और खुद अपना सदियों से "Weak- Ass " करते आ रहे Boxer भाई ने फ़ोन करके कछुए को हार जाने की "सलाह" दी | कुछ लोगों ने, जिसमे खुद  कछुआ और पुलिस कमिश्नर शामिल थे, इस "सलाह" को धमकी की तरह लिया | 

"सलाह" - एक सब्जेक्टिव शब्द है | इसके अनेक मतलब हो सकते हैं, जैसे माँ-बाप की सलाह का मतलब होता है - "ञ" और मैंने KG में पढ़ा था- "ञ" से कुछ नही!!! 
 
Boxer भाई ने 'Million Dollar Baby' देखी थी और Eastwood दद्दू से काफी प्रभावित हुआ था | कोच के महत्व को स्वीकारते हुए खरगोश के लिए  "कोच की खोज" शुरू की गयी | जैसा की पुराणों में लिखा है की जोरू देसी और कोच बिदेसी ही अच्छा होता है- बिदेसी कोच की तलाश थी | लेकिन Boxer भाई ने ग्रेग चैपल, बॉब वूल्मर और पीटर रोबक की नजीर लेते हुए देसी कोच पे ही focus करने की सोची | finally,  मुन्ना भाई की सलाह पर सर्किट को यह ज़िम्मेदारी सौंपी गयी | बोले तो, सर्किट ने कृष्ण की तरह गोवर्धन पर्वत को उठा भी लिया था | कोच का कुल काम इतना था की रेस सफाई से हो और उससे भी ज्यादा सफाई से 'फिक्स' हो!
कोचिंग के नाम पर सर्किट ने  कछुए से केवल इतना कहा- " अबे जेदा लोड नई लेने का ! मिल-खा सिंह और पिटी भूसा ने ही लोड ले के कौन सा तीर मार लिया था! रोड-रनर को देख कार्टून नेटवर्क पे- खोपड़ी नरम और पैर गरम!! जय हो रोड-रनर की... हेहेहेहे... "

"रेस वाला दिन", भोजपुरी में बोले तो The D Day-
दोनों ने अपने अपने तरीके से भगवान् को पटाने की कोशिश की | a-सत्य सांई बाबा के पास से 'दबा के' सोना निकलने से पहले तक कछुआ सांई बाबा का घनघोर-भयंकर-भक्त हुआ करता था उसने उन्हें याद करने की कोशिश की और उस सोने को भूलने की ....

खरगोश पवन पुत्र हनुमान का चेला था और केवल हवा से बातें करता था | राणा प्रताप का एक मात्र famous  आइटम चेतक उसका आदर्श था |   ( वही चेतक जो जहां तहां चौकड़ी भर भर कर निराला बन गया था ब्लैक एंड व्हाईट फिल्मों के टाइम में ) खरगोश ने भी न सोने की कसम खाई और सोने को भूलने की कोशिश की | 

Stadium का माहौल काफी रूमानी हो रहा था | रेस लम्बी थी - Cross Country मतलब stadium  फिर outer  फिर stadium | जैसा की आमिर खान की -जो जीता वही सिकंदर- में हुआ था... वैसा ही...

VIP Gallery में कुछ क्रिकेटर बैठे थे | क्रिकेटर अपने साथ झऊवा भर के T-20 की अप्सराएं यानि कि cheer girls लाये थे | वे यहाँ भी पूरे आयोजन पे भारी थीं | दो काम एक साथ निपट रहे थे- आदमी की कमजोरी का बाज़ारीकरण और नारी सशक्तीकरण ! आदमी confuse था- क्या क्या देखे और क्यों देखे आखिर !

VIP Gallery में नेता जी लोग भी ठस थे | "या शुभ्रवस्त्रावृता" की तर्ज पर सफेदी फैली थी | गाँधी और अंग्रेजों के बाद केवल खेल प्राधिकरणों ने ही खादी के धांसूपने को तह-ए-दिल से स्वीकार किया था | खादी ने खेलों को निराश भी नहीं किया था | चाहे बात CWG की हो या ओलम्पिक की, हमने सब जगह मुँह की खाई थी और इसी खाईं को भरने के लिए 'टैक्स पेयर की गाढ़ी और मीठी कमाई' खादी के बोरों में  में भर कर झोंकी जा रही थी | मालूम हो की सभी खेल प्राधिकरणों के चेयरमैन नेता जी या उनके साले साहब ही हैं और यह प्रथा एक तरह से ठीक भी है | सारी खुदाई एक तरफ और जोरू का "मुआ भाई" एक तरफ; और जहां खुदाई होगी वहाँ खाईं तो होगी ही | इसी को भरना था | भ्रष्टाचार का चरखा चला चला के खेलों की खादी से | यहाँ भी गाँधी relevant थे... बदस्तूर...

उधर VIP Gallery से safe distance पर कुश्ती और कबड्डी जैसे भौंडे और फिसड्डी खेलों के खिलाड़ी भी जुगाली कर रहे थे, जबकि इन्हें कोई घास नहीं डाल रहा था | ये लोग हाव भाव से normal थे क्योंकि इन्हें कोई भाव नहीं दे रहा था |


 Flashback ख़त्म हुआ-
 हाँ तो... धूल धूसरित दोनों भाग रहे थे बे-तहाशा | इस गला काट प्रतिस्पर्धा के पीछे का माजरा असल में बिलकुल अलग था | स्टार्टिंग पॉइंट को छोड़कर stadium के बाहर आते ही दोनों ने accelerator पे से पैर हटा लिया और खुद को न्यूट्रल गेअर में डाल दिया !


कछुए को यह रेस हारनी थी क्योंकि Boxer भाई अन्ना हजारे जी की तरह अपनी जुबाँ का पक्का था | पता था कि वह टिक्का बुट्टी कर डालेगा...


खरगोश को तो यह रेस हारनी ही थी क्योंकि adidas और पेप्सी के stakes काफी हाई थे | अगर कछुआ हार गया तो endorsement contracts का क्या होगा, ऐसा दस बीस बार हो गया तो इन्द्रा नूई शिकंजी बेचेंगी चारबाग रेलवे स्टशन पे... हेहेहेहे...| मज़ा खेलों में नहीं है, हीरोज़ बनाने में है, यूथ आइकन बनाने में है, फिर उस यूथ आइकन से सामान बेचवाने में है | कितने ही क्रिकेटरों का ऊँचा कद इसी कारण से है की वो पेप्सी की बोतल पे खड़े हैंगे adidas का जब्बर जुतवा पहिन के | जय हो... 

दौड़ते हुए दोनों एक छोटी पहाड़ी के चढ़ावदार रस्ते पर आ गए | रास्ता गोल गोल था, बगल में खाईं थी | धूप तेज़ थी | तभी एक बैलगाड़ी आती दिखी | तेज़ धूप से बचने के लिए दोनों धावक उस ओर बढे | एक बूढा बैलगाड़ी को चला रहा था और एक छोटा बच्चा पीछे लेटा था, सो रहा था शायद | दोनों लपक के बैलगाड़ी की ममता भरी छाँव में आ गए और साथ साथ चलने को मजबूर हो गए |


कछुआ- Hi चीकू ! i think आज तो तू ही जीतेगा | 
(कह कर धीरे से बाल खरगोश के पाले में सरका दी )

खरगोश- Hi कल्लू ! मैं तो थक रहा हूँ | Revital न तो युवराज पे चली न मुझ पे चल रही है ! तू  जीतेगा  |
 (खरगोश मन मुस्काया )

कछुआ-नहीं नहीं... वैसे भी तुम तेज हो, very fast and swift! अगर सोये नहीं तो सबकी वाट लगा दोगे बे !  

खरगोश-तेजू बनने से "कद्दू" कुछ नहीं होता | लम्बी रेस के असली घोड़े तुम हो | slow but steady! Endurance है तुम में |


कछुआ- अबे घोड़ा बोल दिया! घोडा होगा तेरा बाप! जीत जा न यार प्लीज़... 
खरगोश- नहीं तू..
कछुआ- नहीं तू..
खरगोश- नहीं नहीं तू..
 कछुआ- नहीं नहीं नहीं तू..

(दोनों का desperation बाहर आ गया और पूरी ज़मीन पर फ़ैल गया, दोनों लोफ़र टाईप के बैल पीछे घूमे, घूरने लगे फिर आँख मारी और गाने लगे- )


 ***सब गन्दा है पर धंधा है ये!***
 ***सब गन्दा है पर धंधा है ये.....***

इतने में वह हो गया जो नहीं होना चाहिए था | पहाड़ी पर एक शार्प मोड़ आया और एक बड़ा सा पत्थर बैलगाड़ी के बाँए पहिये से टकराया | तेज़ आवाज के साथ पहिये की कील निकल गयी | पहिया भी निकल गया | झटके से बूढा असंतुलित होकर नीचे गिर गया और बेहोश हो गया | संक्षेप में कहें तो- 

***एक मोड़ आया और बुड्ढा गड्डी छोड़ आया!***


 अब बैलगाड़ी केवल दाहिने पहिये पर घिसट रही थी और आगे का रास्ता घुमावदार था | बच्चा कुछ देर बाद बैलगाड़ी सहित खाईं में गिरने वाला था | यह महसूस करते ही खरगोश के कान खड़े हो गए और कछुए की हवा निकल गयी |


कछुआ-अब क्या किया जाये! टाइम कम है!

खरगोश-तुम्हारी पीठ मज़बूत है | मैं बाँया हिस्सा उठाकर तुम्हारी पीठ पर टिका सकता हूँ.. थोड़ी दे खीँच सको तो... 

कहकर खरगोश पूरी फुर्ती से लपका और कछुए की पीठ पर axle का बाँया
हिस्सा उठाकर टिका दिया | अब दूसरे पहिये का काम कछुआ कर रहा था | खरगोश ने झपट के बैलों की कमान थाम ली और मोड़ पर बैलों को मोड़ दिया | कछुआ पूरी ताकत से बैलगाड़ी उठाये था | खरगोश भाग के पास के गाँव में गया और मदद ले आया | बच्चा बच गया था | Tent Sports और Start Sports ने पूरा वाकया कवर किया था मगर मदद को आगे हरगिज़ नहीं आये, मीडिया ने ऐसा कोई पहली बार नहीं किया था इसलिए इसपर किसी का ध्यान नहीं गया |


'रेस की' और 'रेस करने के मूड की' ऐसी की तैसी हो चुकी थी | दोनों वहीं बैठ गए | बिना कहे दोनों को सच का अनुभव हो चुका था | खरगोश और कछुए में रेस संभव ही नहीं है जैसे की आम की बराबरी अंगूर से नहीं की जा सकती | आम आम है और अंगूर अंगूर... हाथी हाथी है और लंगूर लंगूर...| दोनों एकदम अलग अलग dimensions हैं | दोनों के अपने गुण-धर्म हैं, अपनी अच्छाइयाँ हैं और अपनी कमियाँ हैं !दोनों में तुलना असंभव ही नहीं अनुचित भी है |

इतना ही नहीं जीवन का सौन्दर्य एवं स्वाद गलाकाट प्रतिस्पर्धा में नहीं बल्कि परस्पर निर्भरता और संतुलन में है | दोनों ने परस्पर निर्भरता से अपनी अपनी खासियतों को इस्तेमाल करते हुए बैलगाड़ी के संतुलन को बचाया था; एक मासूम बच्चे को बचाया था और incidently  दो लोफ़र बैलों को भी बचाया था | यह "जीवन के संतुलन की कला" ही थी !

दोनों जीता हुआ महसूस कर रहे थे | दोनों खुद से जीते थे | खुद के भीतर पल रहे डर से जीते थे | दोनों खुश थे | Boxer भाई, adidas और पेप्सी जाएँ तेल लेने | ये जोंक इन्हें तभी तक चूस सकते थे जब तक दोनों ऐसी "Rat  Race" को choose करते रहेंगे!  खतरा डराने वाले से नहीं डर से होता है | और यहाँ खतरा टल गया था | तभी पब्लिक दौड़ती हुई आई और दोनों को कन्धों पर उठा लिया | पब्लिक ने भी अपना काम कर दिया था यह उसका maximum था | रेस ख़त्म हो गयी थी कछुए और खरगोश में अब कभी रेस नहीं होगी | दौड़ेंगे दोनों, पर 15 अगस्त को, हाफ मैराथन में, कैप्टन मनोज पाण्डेय की याद में, कारगिल की याद में |

 जैसे की आज कल हर बड़ी गाथा का अंत होता है यहाँ भी हुआ- 'खाज तक'  और 'भिन्डियाँ टी.वी.' उनकी बहादुरी और शौर्य की गाथा गला फाड़-फाड़ के रेंकने लगे !अब कुछ बाकी नहीं था |

यह थी- क ख ग 2.0... 
यानि की "कछुआ-खरगोश-गाथा" 2.0



 -स्वरोचिष *स्वतःवज्र*










 

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