Sunday 25 December 2011

चंदा, रेत और हम- तीसरी मुलाक़ात ! :)

 चंदा, रेत और हम- तीसरी मुलाक़ात ! :)
 
सागर किनारे सफ़ेद रेत पर थे...
इंतज़ार था चंदा का |
तारों ने कहा आज चंदा  नहीं आयेगी रुखसत हो जाइये |
नादान तारे... हमें पता था  चंदा  आयेगी...ज़रूर आयेगी... 
तभी दूर नारियल और ताड़  के  घने  झुरमुट  में  आँचल  लहराती...चंदा  दिखी .. 
सागर  से नहा के  निकली थी शायद, 
क्योंकि बाल अब भी गीले थे और हवा में उड़ नहीं रहे थे |
हमने ठंडी चांदनी आँखों में  भर ली ...
और ऑंखें बंद भी कर लीं ...
थोड़ी चांदनी  छलक गयी |
चंदा  को  लगा ये आंसू हैं ...
वो बोली .. इतना  सारा पानी है इस सागर  में ..
पर ये  दो बूंदे बेशकीमती हैं ..
और  चंदा  के  कहने पर  रेत  ने  उन बूंदों को  अपनी गोद में  छुपा लिया |
हमने  चंदा  से  कहा  चलो थोड़ी  दूर  साथ चलें ...
हम रेत  पर तुम चांदनी  की गोद  में ..
तुम  उस कोने पर  हम इस  कोने  पर ..
हो  सकता है  दोनों किनारे  दूर  कहीं मिलते हों ..
दूर  ही सही!
और  हमने वो  दो  बूंदों वाली रेत  उठाते हुए कहा-
तुम्हे ये  देना भी  तो है चंदा !
चंदा ने  हामी भरी ...
और  चंदा  मुस्कुरा दी !
 
-स्वरोचिष "स्वतः वज्र"

 

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