आधी रोटी साँवे की
तिल की चटनी के साथ
बस इतनी सी
ज़िन्दगी है
हलक से उतर सके गर
इतनी बुरी भी नहीं है...
मन की रेत पर नहीं, यहाँ इस चट्टान पे लिखूँगा अब, जब मैं न मिलूं, पढ़ लेना, मेरे स्वर हैं, गुनगुनाओ कभी जब, मुझको महसूस करोगे !
स्वर ♪ ♫ .... | Creative Commons Attribution- Noncommercial License | Dandy Dandilion Designed by Simply Fabulous Blogger Templates