Friday, 16 November 2012

बहुत फ़ासले हैं

लहर से ठहर तक
तगर से ज़हर तक
बहुत फ़ासले हैं
डगर से शहर तक

जतन से पतन तक
अगन से पवन तक
बहुत फ़ासले हैं
चमन से अमन तक

इधर से उधर तक
शिखर से अधर तक
बहुत फ़ासले हैं
मेहर से क़हर तक

जुनूँ से सुकूँ तक
चलूँ से रुकूँ तक
बहुत फ़ासले हैं
कटूँ से झुकूँ तक

लगूँ  से बनूँ तक
जलूँ से बुझूँ तक
बहुत फ़ासले हैं
सहूँ से कहूँ तक

सितम से रहम तक
नरम से गरम तक
बहुत फ़ासले हैं
जनम  से मरण तक

महक से बहक तक
सिसक से पलक तक 
बहुत फ़ासले हैं
सड़क से फलक तक


अकल से शकल तक
तरल से गरल तक 
बहुत फ़ासले हैं
अज़ल से गज़ल तक

(अपूर्ण)

 

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