कुछ रात का बिछौना
कुछ ज़िंदगी खिलौना
कुछ शाम का धुंधलका
कुछ दिन का दिया हल्का
कुछ अधजली बस्ती है
कुछ डूबती कश्ती है
इक आह निकलती है
इक टीस सी उठती है !
कुछ जिस्म की नज़ाक़त
कुछ रूह की हरारत
कुछ साँस की रवायत
कुछ आस की शिक़ायत
कुछ बर्फ सी गिरती है
कुछ तीर सी चुभती है
इक आह निकलती है
इक टीस सी उठती है !