ये देश अभी विकासशील है साहब
यहाँ
मुर्दा भी मरीज़ है साहब
किसी
को मयस्सर है दोनों जहाँ की खुशी
किसी
को एक रोटी, एक कमीज़ है साहब
क्या
मजलिसें, क्या अदालतें, क्या तो मुंसिफी
जम्हूरियत
अमीरों की कनीज़ है साहब
ये शायर बहुत बद्तमीज़ है साहब
सच बयानी
की इसको तमीज़ है साहब
पीना
है सस्ता ही तो पसीना पी लीजे
साफ़
पानी बहुत महँगी चीज़ है साहब
इस
गेहूँ मे मिला है लहू किसानों का
ये
रोटी बहुत लज़ीज़ है साहब
जहाँ
को तलब हुआ करे मजाज़-ओ-ग़ालिब की
हमें
तो खुद की ग़ज़ल ही अज़ीज़ है साहब !