पर्सनैलिटी डेवेलपमेंट की क्लास । स्वाभाविक रूप से, अंग्रेजी में ही थी, है और रहेगी भी । ये क्लास बैंक के सभी कर्मचारियों के लिए वैसे ही कम्पलसरी थी जैसे जैसे खच्चर के लिए घास, चरोगे नहीं तो खाओगे क्या? कद्दू!!
सभी लगे थे । मैडम अलग लगी थीं, ट्रेनीज़ अलग ! अलग अलग ।मैडम को सब्जेक्ट मैटर की कोई ख़ास चिंता नहीं थी क्यूंकि उन्हें ये ब्रह्मज्ञान हो गया था कि अंग्रेजी में ताबड़तोड़ बकैती कर लेने के बाद इस बात का कोई महत्व नहीं रह जाता कि बात में दम था या नहीं, इसे सुरक्षा परिषद् में भारत की परमानेंट सीट की तरह समझा जा सकता है अगर मूड करे तो
...... नहीं तो हमें भी बसंती की तरह बे-फजूल बातें करने की आदत तो है नहीं ।
ट्रेनीज को भी सब्जेक्ट मैटर की कोई ख़ास चिंता नहीं थी क्यूंकि वो मैडम को देख रहे थे और अभी कुछ और देर तक घूर घूर के इस ईश्वरीय कृति को हर तरह से एप्रूवल सर्टिफिकेट देने पर उतारू थे । क्लास चुर्रैट चल रही थी संसद की तरह ।
मैडम के सुंदर मुख विवर से अंग्रेजी के जटिल शब्द ऐसे झर -झर झर रहे थे जैसे जुगाली परस्त गैया के मुँह से श्वेत पदार्थ ।
पीछे बैठे रामनिहोर असंतुष्ट विधायक की तरह ही असंतुष्ट थे। पसीना पसीना थे जिसका कारण हसीना नहीं थी । तंग आकर, पगलाकर और फाइनली झुंझलाकर रामनिहोर बोल उठे-
"मैडम जी आपकी अंग्रेजी तो कर्री है लेकिन मुझे क्लर्की का एग्जाम पास करने जितनी ही अंग्रेजी आती है !
क्या मेरा पर्सनैलिटी डेवेलपमेंट हिंदी में नहीं हो सकता?"
सन्नाटा!..........
मासूम रामनिहोर, मासूम प्रश्न ।
आप ही बताइए कोई भी बड़ा काम कभी हिंदी में हो सकता है क्या ??
न भूतो न भविष्यति!
हा हा हा