Sunday, 11 November 2012

बेहतर शकल की आस में ...


बेहतर शकल की आस में 
धोता चला गया
आईने से अक्स ही मेरा
खोता चला गया

माना कि मोतियों मे थी
क़ीमत हज़ारों की
धागे की सोच जो उन्हें
पिरोता चला गया

हाथों की लकीरें मेरी
मुट्ठी मे क़ैद थी
होना था जो मगर वही
होता चला गया

सरहद के आर से कोई
रोने की सदा थी
सरहद के पार भी कोई
रोता चला गया


 

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