Friday 23 November 2012

ऐसे ही तो कुछ भी नहीं होता !


सुदूर एक सुनसान ठंडे पहाड़ पर एक अकेली हरे रंग की गिलहरी रहती थी | कहते थे भगवान ने हरे रंग की एक ही गिलहरी बनाई थी दुनिया में | गिलहरी सुबह से शाम तक दूसरी हरी गिलहरी की तलाश में रहती | पहाड़ की ऊबड़ खाबड़ पीठ पर दौड़ती फिरती | पहाड़ को गुदगुदी सी होती और वह झूम उठता | गिलहरी मुस्कुरा देती, पहाड़ भी मुस्का देता |

पहाड़ के नीचे एक पुरानी सी गुमटी में एक मोची सालों से जूते बना रहा था | तैंतालीस बरस पहले उसने ग़लती से एक पैर का जूता बहुत ही बड़ा बना दिया था; मोटी सी बिल्ली भी सो जाए- इतना बड़ा!  यह जूता किसी के भी पैर में नहीं आया | मोची ने जूते को कभी फेंकना नहीं चाहा, जाने क्यूँ! वह रोज़ उसे अपने साथ लाता, दिन भर काम करता, कभी उसमे अपने कुछ औज़ार रखता | बीड़ी पीते समय जूते की झुर्रियों को गिनने की कोशिश करता फिर शीशे में खुद की झुर्रियों से उनको तोलता | मुस्कुराता | जूता भी मुस्कुराता | 

गुमटी समुद्र के तट से लगी हुई थी जहाँ किनारे पर जाने कब से एक पुरानी नाव तैरा-डूबा करती थी- पाल वाली नाव जिसका पाल ही टूट चुका था ! इस पुराने किस्म के पाल तो बनते ही नहीं अब | नाव पाल की आस मे एक चमकीली लहर पर तैरा करती थी | लहर ने करवट ली और नाव फिसलती हुई किनारे तक जाकर, उसे छूकर लौट आई | वापस आकर लहर को छुआ तो लहर की कुछ बूँदें उछ्लीं, नाव और भी भीग गयी | नाव मुस्का दी | लहर भी मुस्कुरा दी यह सब देख के | 

दुनिया में कई चीज़ें जो खुद को अधूरा समझती हैं उतनी अधूरी भी नहीं हैं | पूरा होना एक अवस्था नहीं एक प्रक्रिया है | एक कैफ़ियत है । एक तलाश है | तलाश भी… एक सफ़र जैसी तलाश…

इस सफ़र में जो भी उसके साथ है वही उसका बाकी हिस्सा है | तलाश यहीं ख़त्म होती है | तलाश के सफ़र में बहते रहना तलाश का अंत है हालाँकि ऐसा लगता भर है की इसका का अंत कभी नहीं होता- मगर ऐसा हो चुका होता है, बहते बहते ही  | इसके अलावा कुछ भी सच नहीं है | न कोई दूसरी हरी गिलहरी बनाई भगवान जी ने कभी, न उस बड़े वाले जूते का पैर बना, न पाल वाली नाव को उसका पाल मिला | शुक्रिया पहाड़ ! शुक्रिया मोची !! शुक्रिया चंचल लहर !!!

फिर भी यह दुखान्त नहीं है | यह दुखान्त नहीं है क्योंकि चाहा हुआ न मिलने के बाद भी सब पूरे से हैं | "पूरे" न सही पर "पूरे से" तो हैं ही | इतना काफ़ी है इसे दुखान्त न कहने के लिए...

कहते हैं न-  

ऐसे ही तो कुछ भी नहीं होता !
वरना  तुम नहीं होते
मैं नहीं होता...

Painting courtesy, Ms Shubhra Saxena. Thanks Maam.
 

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