अपने
देस से जो भी निकले
रोटी
की आस मे
रोज़ी
की तलाश मे
कहने
को उनके
दो
घर हैं अब
गाँव
भी दो हैं
पता
तो एक भी पता नही मगर !
जिनके
दो गाँव होते हैं
रास्तों
मे ही पाँव होते हैं!
जिनके
दो घर होते हैं
जाने
क्यूँ बेघर होते हैं!