Saturday 2 June 2012

गुलामों की आज़ादियाँ


पिंजरे में बंद पंछी से एक आज़ाद उड़ते हुए पंछी ने पूछा-
तुम्हें कैसा लगता है? गुलामी तो सबसे बड़ा दुःख है | तुम हमेशा इन बन्धनों में रहते हो, इससे तो बेहतर होता कि तुम मर ही जाते...मुझे देखो मैं कितना आज़ाद हूँ! 

जो चाहूँ करूँ
यहाँ उडूं 
या वहाँ फिरूँ
इस नदी का पानी पियूँ
उस डाल की छाँव में सुस्ताऊँ
और सबसे मिलूँ...

और एक तुम हो यहाँ | इस छोटे से पिंजरे में क़ैद, बेबस और लाचार ! मुझे तुम पर दया आती है |

गुलाम परिंदा बोला- क़ैद में आज़ादी है और कभी कभी आज़ादी में भी क़ैद है| कैदी के पास उम्मीद है लेकिन आज़ाद के पास नहीं...उसके पास डर है क़ैद हो जाने का |
अपने पीछे देखो... बिल्ली आ रही है भागो...और हाँ आज खाने का लंबा जुगाड़ कर लेना- गर्मियां भी तो आ रही हैं |लू चलेगी, नदिया का प्रदूषित पानी भी सूख जायेगा, वो डाल भी मुरझा जायेगी |

क्लाइमेट चेंज का युग है | डरबन में भी कुछ निकल के नहीं आया 'अर्थ सम्मिट'' में भी अनर्थ ही होगा |

मेरा अन्दर जाने का समय हो गया है | अंदर AC है | तुम पीछे देख ही लो... बिल्ली नहीं बिल्लियों का पूरा झुण्ड है |ही ही ही ... ;) :P

और रही बात पिंजरे में physically क़ैद होने की, तो तुम्हारा पिंजरा थोड़ा बड़ा सही मेरा थोड़ा छोटा सही | तुम हर जगह जा-जा के खुश हो... मेरे पास सब आ-आ के खुश होते हैं | छोटे बच्चे मुझे देख के मुस्काते हैं और मेरे साथ खेलते हैं- जो मेरे लिए सब कुछ है | काश! तुम्हे भी यह सब नसीब होता |

आज़ादी और गुलामी रिलेटिव कांसेप्ट्स हैं और यह व्यक्तिगत प्राथमिकताओं का विषय है | लोहे की तारों का बना पिंजरा आपको बंद तो कर देता है मगर बहुत सारी गुलामियों से आज़ादी भी दे देता है ; सोच के देखना कभी !

दुनिया में पूरी तरह से आज़ाद कोई भी नहीं, न ही कोई पूरी तरह से गुलाम है |सैंतालीस के बाद भी कई लोग आज़ाद नहीं हुए- भूखे नंगे और बीमार हैं | वो कबूतर तो सैंतालीस के पहले भी आज़ाद थे तो फिर आज़ादी मिली तो मिली किसे! आज़ादी-गुलामी तो इंद्रधनुष की तरह है, इसमें असंख्य रंग हैं- कुछ गुलामी के कुछ आज़ादी के; जिंदगी पूरा इंद्रधनुष साथ लेके आती है |

अगर कोई पूरी तरह से सुकून में है तभी पूरी तरह से आज़ाद होगा जो कि हो नहीं सकता | आज़ादी भी एक तरह की गुलामी ही है जिसमे सभी गुलाम अपना मालिक खुद चुनते हैं- प्रजातंत्र को ही लेलो | 

और गुलामी में एक तरह की आज़ादी है जैसे की मैं !!! मुझे किसी बात की फ़िक्र नहीं | मेरी हर फ़िक्र मेरे मालिक की है और इस तरह वो मेरी मर्ज़ी का गुलाम है और मैं उसका मालिक !

वो मुझे तब तक अलग- अलग चीज़ें देता है जब तक मैं कुछ न कुछ खा न लूँ | अब यहाँ मालिक गुलाम है क्योंकि उसे गुलाम चाहिए, गुलामी चाहिए और इसके लिए वो सब कुछ करेगा अपने गुलाम के लिए...

वैसे काफी देर कर दी तुमने एक बिल्ली तुम्हारी पूंछ का सुंदर स्पर्श प्राप्त कर रही है | भागो भी... भाषण बाद में... :) 



 

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