ये खुश्क रेत वक़्त की
फिसलती जाती है
मुट्ठियों से
रवायत है
आँखों से टप-टप गिरती
गीली यादें
वक़्त को बाँधे शायद
इनायत है
अब ये गीला लम्हा
दिन के घूमते
चाक पे है
क़यामत है
एक मूरत ढल जाये
गर साथ दो अपना तो
एक हाथ दो अपना तो...