Tuesday 19 June 2012

लक्ष्य और मनुष्य (लघु कथा)

जब उसे होश आया तो उसने खुद को एक निर्जन द्वीप पर पाया | उसके पास केवल एक सोने की मुहर थी | यह मणियों का द्वीप न था | कोई दूर तक दिखाई न देता था केवल रहस्यमय ढंग की बड़ी-बड़ी चट्टानें थीं | जिनमें कटोरी के आकार के असंख्य छेद थे और द्वीप के चारों तरफ अथाह समुद्र | तभी उसकी नज़र एक चील पर पड़ी जो एक बहुत ऊंचे टीले पर बैठा था और उसे न जाने कब से घूर रहा था |

  अब जाकर उसे एहसास हो रहा था कि वह साधारण नाविक था और व्यर्थ ही खुद को विलक्षण मानता आ रहा था अब तक | अपने परिवार के पालन के लिए वह दूर देशों की यात्रा करता था | यात्रा के दौरान जिन देशों से गुजरता वहां का सामान कम दामों में खरीदकर दूसरे देश में मुनाफा कमाता था; चूंकि कार्य कठिन था और उसका कोई साथी न था अतः उसकी आमदनी आवश्यकता से कम थी |

 एक बार उसे मणियों के द्वीप के विषय में पता चला | उसने रहस्यमय द्वीप की यात्रा करने का विचार बनाया | उसने अपने कुछ नाविक साथियों से साथ चलने का आग्रह किया | सब इसे दुस्साहस या मूर्खता की संज्ञा देते रहे क्योंकि मणियों के द्वीप के विषय में कई कहानियाँ प्रचलित थीं | कई लोगों ने द्वीप पर एक रहस्यमय चील को देखा था और जान बचाकर भाग आये थे | कुछ अफवाहें बुरी आत्माओं तथा द्वीप की दैत्याकार चट्टानों को लेकर प्रचलित थीं | पर नाविक ने मन ही मन कहा-

 "लक्ष्य मनुष्य को स्वयं पुकारता है तब मनुष्य का कर्तव्य है चलते जाना और केवल चलते जाना, उसकी आवाज़ कि दिशा में | सफलता या असफलता एक मिथक के दो नाम हैं | "

 नाविक का संकल्प दृढ एवं अडिग था | निकल पडा वह अकेले ही अपनी नाव से |दिन बीतने लगे |वह चला जा रहा था एक निश्चित दिशा कि ओर तभी एक बहुत बड़े समुद्री  तूफ़ान ने उसका रास्ता रोक लिया | तूफ़ान अत्यंत दारुण था | उसके सारे प्रयास विफल रहे | नाव नष्ट हो गयी और सारा धन भी खो गया |

 वह भटक चुका था | सब कुछ ख़त्म हो चुका था | उसे समझ में नहीं आ रहा था कि पहले यहाँ से निकलने कि युक्ति सोचे या खुद को कोसे ! उसे इस प्रश्न का उत्तर चाहिए था कि इस प्रकार का निर्णय लेना, मन की आवाज़ सुनना एक साहसपूर्ण कदम था याकि लालच | वह आखिर क्या है- एक साहसी नाविक या लालची नाविक | पर उत्तर कहीं से नहीं आया |
तब उसके अन्दर से आवाज़ आयी-

 "लक्ष्य मनुष्य को स्वयं पुकारता है तब मनुष्य का कर्तव्य है चलते जाना और केवल चलते जाना, उसकी आवाज़ कि दिशा में | सफलता या असफलता एक मिथक के दो नाम हैं | "

उसकी तंद्रा उसकी प्यास ने तोड़ी | थोड़ा सा पानी मुँह में डालते ही थूक दिया | पानी में बहुत ज़्यादा नमक था |
उसने टीले पे जाने का निर्णय लिया | काफी श्रम के बाद वह टीले पर चढ़ने में सफल रहा | चील उसे देख कर उड़ा नहीं बल्कि चील ने कहा- क्या चाहिए ? मणियों का द्वीप ?

 कहकर चील मुस्कुराया | नाविक न जाने क्यूँ, पर लज्जित था | उसने चील से पूछा पानी कहाँ मिलेगा ?
चील ने कहा- किसी भी चट्टान की जड़ में बनी कोटरों में पीने लायक पानी है | सचमुच ये चट्टानें अद्भुत हैं ! तुम इनकी कीमत समझ सकते हो | ध्यान से नीचे देखो | यह सुनकर नाविक टीले से नीचे देखता है | ओह ! अद्भुत, विस्मयकारी, चमकीला और शानदार !! पूरा द्वीप सूर्य के प्रकाश में चमक रहा था | असंख्य मणि दूर-दूर तक पूरे द्वीप पर फैले थे | तो यह सचमुच मणियों का द्वीप ही था !

नाविक ने पलटकर चील की ओर देखा मगर चील काफ़ी दूर उड़ चुका था | चील ने वहीं से कहा- तुम एक निर्भीक और परिश्रमी नाविक हो | दो दिन बाद व्यापारियों का एक समूह यहाँ से गुजरेगा | अपनी मदद स्वयं करो... |
यह कहकर चील दूर क्षितिज में गायब हो गया |

 नाविक सोचता रह गया कि चील को उसके बारे में इतना सब कैसे मालूम ! परन्तु फिर एक बार प्यास ने उसकी तन्द्रा तोड़ी |
वह टीले से उतर आया | एक चट्टान कि जड़ की कोटर से पानी निकालकर चखा | आश्चर्य ! इतना मीठा और शुद्ध पानी !

 फिर उसने चट्टान कि ऊपरी कोटरों में झाँका तो देखा कि नमकीन पानी भरा है तथा कुछ सूखे कोटरों में हीरे के जैसे क्रिस्टल चमक रहे हैं | उसने एक क्रिस्टल को चखा | यह नमक था | वह खुशी के मारे नाच उठा क्योंकि उन दिनों खारे पानी से नमक निकालना जटिल काम था और नमक बहुत मंहगा था | उसका भाग्य चमक चुका था; अब वह अमीर था, बहुत अमीर !

 उसे चट्टानों का रहस्य समझ आ गया | ये एक फ़िल्टर की तरह कार्य करती थीं; खारे पानी से नमक को अलग कर देतीं थीं | ये क्रिस्टल ही मणियों जैसे चमकते थे | चील इस द्वीप का रखवाला था | उसे एक साहसी उत्तराधिकारी की आवश्यकता थी जो उसे इस ज़िम्मेदारी से मुक्त कर सके |
दो दिन बाद व्यापारियों का एक बेड़ा उधर से निकला और कुछ नमक के क्रिस्टल और एक मुहर के बदले व्यापारी उसे अपने साथ ले चलने को तैयार हो गए |

एक महीना बीत चुका था | नाविक का आलीशान घर | नाविक अब एक अमीर सेठ बन चुका था | चारों ओर जश्न का माहौल था | सारे रिश्तेदार इकट्ठा थे | परिवार के लोग सजे-धजे घूम रहे थे | दावत चल रही थी | खाने की मेज सजी थी |
तभी एक नौकर ने आकर नाविक के कान में कुछ कहा | नाविक ने भोजन समाप्त किया और एक नए सफ़र पर जाने की तैयारी करने लगा |

दोस्तों ने पूछा- कहाँ जा रहे हो ?
नाविक बोला- सुदूर पूर्व में "सोने कि चिड़ियों का एक देश" है |
-तो???
-तो मैंने वहाँ जाने का निर्णय लिया है |
-क्या???
- हाँ, उसके बारे में बहुत सुना है, उत्सुकता थी बहुत दिनों से...
- लेकिन इसकी क्या ज़रुरत है ??? तुम तो अब सबसे अमीर हो पूरे नगर में !

नाविक मुस्कुराया और बोला- एक नाविक का जीवन उसकी नाव है और नाव का जीवन है पानी | उसने अपने छोटे बेटे के सिर पर हाथ फेरा और मन ही मन कहा-

"लक्ष्य मनुष्य को स्वयं पुकारता है तब मनुष्य का कर्तव्य है चलते जाना और केवल चलते जाना..... "

 -स्वरोचिष (28/02/08)

 

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