इंसानी फितरत ''बांटने'' की है | ऐसा लगता था पहले कभी कि मैं इस पहले से बँटी दुनिया में पैदा हुआ हूँ | अब महसूस होता है कि मैं खुद इस बँटवारे की वजह हूँ | बाँटना मेरी फितरत है, आदत है, मुसीबत है और इन सबसे ऊपर ज़रुरत है | ऐसा नहीं है कि बँटवारे border पर या भाई भाई के बीच ही हैं... बँटवारे और गहरे तक गड़े बैठे हैं...मेरे खुद के ज़हन में...|
रेलवे में नौकरी पाने के बाद देखा... कई departments हैं, कई services हैं - IRTS, IRPS, IRAS, IRPF, IRSE, IRSME, IRSS, IRSSE...
इसमें मुझे "I" में Indian नहीं "I" ही दिखा हरदम- "I" means मैं खुद!
"R" यानी Railway पे कभी ध्यान ही नहीं दिया मैंने...
मेरा सारा ज़ोर तो IR के बाद के दो हर्फ़ों पर है |
जो लोग पहले मेरे दोस्त हुआ करते थे, आज वो दूसरी services में हैं तो दोस्त कहाँ से हुए अब ?
मैंने ये नया बँटवारा खुद से खोजा है और पैने खंजर सा डाल रखा है अपने दिल और दिमाग में | थोड़ा दर्द तो है पर मुझे मज़ा आता है बँटवारे करने में |
जल्द ही मैं भी बँट जाऊँगा कई टुकड़ों में और बिखर जाऊँगा | मेरी ये फितरत ही मेरी किस्मत है | मैं खुद बँटवारा हूँ और टुकड़े- टुकड़े होता हुआ देख रहा हूँ खुद को...
Swarochish Somavanshi, ir"T"s