Thursday, 21 June 2012

चार बजे तक: सात सितारे चंदा के...



चार बजे तक सोयें शायद !
नींद नहीं है 

इन आँखों की जेब है खाली 
उधार दो न 
थोड़ी निंदिया
आँख तुम्हारी सूजी है चंदा !

कैसे पहुँचूँ...
पलक तुम्हारी छोटी है 

तुम आ जाओ
यादों की इक रेल चली है 
अपनी नगरी
सपनों का इक टिकट कटाओ
आ जाओ !

चार बजे तक 
आ जाओ 
चन्दा !

सुनकर थोड़ी नींद से जागी
हवाओं में जुल्फें लहरा दीं
सबा सी घूमी
मुझको देखा
और चंदा मुस्कुरा दी !
 

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