चार बजे तक सोयें शायद !
नींद नहीं है
इन आँखों की जेब है खाली
उधार दो न
थोड़ी निंदिया
आँख तुम्हारी सूजी है चंदा !
कैसे पहुँचूँ...
पलक तुम्हारी छोटी है
तुम आ जाओ
यादों की इक रेल चली है
अपनी नगरी
सपनों का इक टिकट कटाओ
आ जाओ !
चार बजे तक
आ जाओ
चन्दा !
सुनकर थोड़ी नींद से जागी
सुनकर थोड़ी नींद से जागी
हवाओं में जुल्फें लहरा दीं
सबा सी घूमी
मुझको देखा
और चंदा मुस्कुरा दी !