इन चिड़ियों को सुनो कभी
क्या दुहराती रहतीं हैं
बार-बार...
चीं...चीं...चीं...चीं...
कोई नई बात नहीं है
इनके पास भी कहने को
और मेरे पास भी...
मैं भी कुछ पुरानी बातें
दुहराया तिहराया करता हूँ |
कई परतों में मोड़ के
इन बातों की चादरें
जमा करता जाता हूँ
ज़हन की आलमारी में |
आज फिर एक पुरानी दुहरी बात
निकाली आलमारी से
और बिछाई है
सिर्फ तुम्हारे लिए
आओ तो कुछ दुहरायें- तिहरायें...
तुम्हें तो पता ही है
ये सब...
क्यूँकी
इस आलमारी की चाभी
आज भी तुमारे पास ही तो है |