तुमने रात चुरा ली है
नींद-ओ-ख्वाब भी
अंगडाईयाँ, पलकें
सब इंतज़ार में हैं..
मैं तुम पे
टूट के रोऊँ
और उन्हें कुछ
आस हो...
नींद हो न हो
उबासियों की
इक साँस हो...
सारी यादों की पतली डोर
जोड़-जोड़ के...
एक मज़बूत रस्सी से
बाँध लेती हो...
सजा तो मंज़ूर है कुछ भी
मगर मेरी खता क्या है चंदा !
अपनी नींद से भरी
सपनीली आँखों को
कागज़ पे झुका के
उड़ेल दूँ
तो वो ग़ज़ल आ जाये
जिसमे तुम बसती हो चंदा...
आओ ना ग़ज़ल में मेरी
इंतज़ार कब से है,
इससे पहले कि
नींद आ जाये
या आँखों की झीलें
जम जाएँ
आ जाओ ना चंदा
या इतना ही कह दो कि
कब आओगी...
इन तारों को देख के सोचा है
तुम्हारे गले की माला
कब टूटी थी
मोती टिम-टिमा रहे हैं
फलक में दूर तलक
भिगा रहे हैं
शबनम को
आओ न
इन तारों की माला पिरो के
तुम्हे पहना दूँ
आओ न चंदा !
तारों के सब्र का
और मेरे इंतज़ार का
इम्तेहान बहुत हुआ जी अब...
आओ न चंदा !!
आओ न...