Monday, 5 March 2012

ठहराव का स्वाद



झीलों का ठहरा पानी मीठा 
तो क्यूँ समंदर में नमक है इतना..
जबकि नदियों का ताज़ा पानी 
है खारे सागर में रोज़ घुलता 

ठहराव का स्वाद कैसा होता है ?

झील की छोटी मछली 
सागर की सीपियों से पूछती है... 
कैसा होता है ठहराव का स्वाद ?

और एक छोटी डली नमक की 
चीनी से पूछती है...

कैसा होता है ठहराव का स्वाद ?

तब बुद्ध मुस्कुराए, बोले-
ठहराव में स्वाद नहीं 
आनंद होता है !

ये नमक और मिठास से परे
मन का अनुभव है

तुम इसे निर्वाण कहो..
इस आनंद को...  
उस स्वाद को 
अगर चाहो तो...

ये सुनकर नमक की डली
चीनी में घुल गयी
और pH 7 का सादा पानी 
फ़ैल गया

सहसा उसमे 
सफ़ेद कमल खिला फिर 
जो कि स्वाद से परे
महक से परे
रंग से परे 
कीचड़ और हवा से भी परे  
आनंद था.. 

विमुक्ति रस निर्वाण!

-स्वतःवज्र 

 

स्वर ♪ ♫ .... | Creative Commons Attribution- Noncommercial License | Dandy Dandilion Designed by Simply Fabulous Blogger Templates