Friday, 12 October 2012

आसरा


ज़िंदगी समंदर मे नाव सी है
ठहरी है, कभी चलती है
न डूबती है न पार लगती है!

समंदर मे पानी तो है
मगर नमकीन है
इससे कहीं प्यास बुझती है!

और इस नाव मे हम-तुम
अनजान सही, साथ होते हो तो
ज़िंदगी आस-पास लगती है

उम्मीदों की लहरें भी हैं
चार हाथों के चप्पू भी
पर वो तुम्हीं हो जिससे आस जगती है!
 

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