ज़िंदगी समंदर मे नाव सी है
ठहरी है, कभी चलती है
न डूबती है न पार लगती है!
समंदर मे पानी तो है
मगर नमकीन है
इससे कहीं प्यास बुझती है!
और इस नाव मे हम-तुम
अनजान सही, साथ होते हो तो
ज़िंदगी आस-पास लगती है
उम्मीदों की लहरें भी हैं
चार हाथों के चप्पू भी
पर वो तुम्हीं हो जिससे आस जगती है!