Monday 29 October 2012

आँसू आस और तुम


वो दो आँसू मेरी पलकों मे 
तब रुके से थे
तुम्हारी उन हथेलियों के 
इंतेज़ार मे थे

बंद आँखों मे ढले 
नर्म आँसू
तुम्हारी गर्म सी हथेलियों की 
आस मे थे

सोचा करते थे के 
देखोगी कभी
सबब सारे आँसुओं के
पूछोगी कभी
या फिर नहीं भी कभी...

तो भी इक आस सी लगी थी 
हथेलियों से कहीं...

के वो सहला के मेरे 
उलझे छल्ले बालों के
और फिर बढ़के कभी 
थाम लेगी आँसू मेरे
और आँख की पलकों पे 
इनायत होगी

मेरे आँसू 
उन्ही हथेलियों की आस मे हैं...

मगर ये जान के हैरत है के 
उन आँखों मे
मेरे आँसू का अक्स 
पलकों के बीच अटका है

अपनी पलकों से बढ़के 
आँसू मेरे पोछ दिए
तुम्हारी आँखों से अब 
आँसू मेरे बहते हैं

ऐसा भी कभी दुनिया मे होता है कहीं?
ऐसा भी कभी दुनिया मे होता तो नहीं!


 

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