वो दो आँसू मेरी पलकों मे
तब रुके से थे
तुम्हारी उन हथेलियों के
इंतेज़ार मे थे
बंद आँखों मे ढले
नर्म आँसू
तुम्हारी गर्म सी हथेलियों की
आस मे थे
सोचा करते थे के
देखोगी कभी
सबब सारे आँसुओं के
पूछोगी कभी
या फिर नहीं भी कभी...
तो भी इक आस सी लगी थी
हथेलियों से कहीं...
के वो सहला के मेरे
उलझे छल्ले बालों के
और फिर बढ़के कभी
थाम लेगी आँसू मेरे
और आँख की पलकों पे
इनायत होगी
मेरे आँसू
उन्ही हथेलियों की आस मे हैं...
मगर ये जान के हैरत है के
उन आँखों मे
मेरे आँसू का अक्स
पलकों के बीच अटका है
अपनी पलकों से बढ़के
आँसू मेरे पोछ दिए
तुम्हारी आँखों से अब
आँसू मेरे बहते हैं
ऐसा भी कभी दुनिया मे होता है कहीं?
ऐसा भी कभी दुनिया मे होता तो नहीं!