आज रात फिर खड़े हैं दोनों
मैं और चंदा
अपनी अपनी छत पे
इक ऊपर इक नीचे
आँखों में फिर से अक्स है
तारों का रक्स है
चंदा सुनो न !
मेरा तिल का लड्डू
हो तुम !
पता है तुम्हें
ये काला सा निशाँ
जो तुम्हारे गाल पे है
काले तिल सा
ये "तिल" है
चंदा!
और तुमसे पोशीदा
ये चाँदनी की सुफैद ओढनी
गुड़ की मिठास सी है
टपकती है
गन्ने के खेतों में
रात भर
आहिस्ता...
ये गोल-गोल चन्दा मेरी
तिल का लड्डू है
मीठा सा
तिल का लड्डू !
चंदा सुनो न !
मेरा "तिल का लड्डू"
हो तुम !