Thursday, 19 July 2012

तिल का लड्डू


आज रात फिर खड़े हैं दोनों
मैं और चंदा
अपनी अपनी छत पे
इक ऊपर इक नीचे

आँखों में फिर से अक्स है
तारों का रक्स है

चंदा सुनो न !
मेरा तिल का लड्डू
हो तुम !

पता है तुम्हें
ये काला सा निशाँ
जो तुम्हारे गाल पे है
काले तिल सा
ये "तिल" है
चंदा!

और तुमसे पोशीदा
ये चाँदनी की सुफैद ओढनी
गुड़ की मिठास सी है
टपकती है
गन्ने के खेतों में
रात भर
आहिस्ता...

ये गोल-गोल चन्दा मेरी
तिल का लड्डू है
मीठा सा
तिल का लड्डू !


चंदा सुनो न !
मेरा "तिल का लड्डू"
हो तुम !
 

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