Sunday, 1 July 2012

जी करता है



हर दफ़ा लिख के मिटाने को जी करता है 
ये शहर छोड़ते जाने को जी करता है |

उतर गयी है चमक मज़हबों के शीशों की
वो शीशे तोड़ते जाने को जी करता है |
 
मैं कैसे मानूँ बिना दौड़े हार जाऊँगा मैं 
वक़्त से दौड़ लगाने को जी करता है |

पड़ोसी मुल्क जो अपने थे पर गुमराह हैं अब 
उन्हें भी जोड़ते जाने को जी करता है |

मुझे है इल्म वो परबत  अबके गिर जायेगा 
इस दफ़ा दिल से गिराने को जी करता है |

वफ़ा ने कहा था वो आयेगी ज़रूर इक दिन 
फिर उसी मोड़ पे जाने को जी करता है |

हर दफ़ा लिख के मिटाने को जी करता है 
ये शहर छोड़ते जाने को जी करता है |

 

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