हर दफ़ा लिख के मिटाने को जी करता है
ये शहर छोड़ते जाने को जी करता है |
उतर गयी है चमक मज़हबों के शीशों की
वो शीशे तोड़ते जाने को जी करता है |
मैं कैसे मानूँ बिना दौड़े हार जाऊँगा मैं
वक़्त से दौड़ लगाने को जी करता है |
पड़ोसी मुल्क जो अपने थे पर गुमराह हैं अब
उन्हें भी जोड़ते जाने को जी करता है |
मुझे है इल्म वो परबत अबके गिर जायेगा
इस दफ़ा दिल से गिराने को जी करता है |
वफ़ा ने कहा था वो आयेगी ज़रूर इक दिन
फिर उसी मोड़ पे जाने को जी करता है |
हर दफ़ा लिख के मिटाने को जी करता है
ये शहर छोड़ते जाने को जी करता है |