Thursday, 5 April 2012

सरफरोशी की तमन्ना



इतने कायर भी  नहीं  हम 
मर तो जाएँ मुल्क पे कल 
मौत के बाद सोचते हैं 
और क्या रह जायेगा !

नाम पत्थर पर खुदा सा
इक गला माँ का रुँधा सा 

इक शहर मेरे बिना सा
इक मेडल सीने बिना सा

इक दफ़ा जनता का रेला 
हर दफ़ा बेमेल मेला 

हर दफ़ा बेमेल मेला 
याद उनकी है दिलाता

जोकि मिट्टी हो गए बस
इक अधूरी आन पे बस 

उनकी हसरत दम-ब-दम बस 
बोलें वन्दे मातरम बस 

सरफरोशी की तमन्ना 
उनकी हर इक साँस में बस 

और इक हम भी यहाँ हैं 
जोकि हर पल चीखते हैं


इतने कायर भी  नहीं  हम 
मर  तो  जाएँ  मुल्क  पे  कल 
मौत  के  बाद  सोचते  हैं 
और  क्या  रह  जायेगा !
और  क्या  रह  जायेगा ...




 

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