Thursday 2 February 2012

बे-मौसम, बिन बादल, बरखा...

आँसू आँख की डेहरी पर
खड़े होके
बहते नहीं 
किस बात का  
इंतज़ार करते हैं 

पलकें  बढ़  के
खींच लेती हैं
बरबस ..

तब  ढकेले  जाने  पे 
फिसलके चेहरे को
नमकीन करते हैं

और इस तरह
बे-मौसम
बिन बादल
बरखा होती है...

-स्वतःवज्र
 

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