भीड़ में घुला
बेनाम चेहरा
अनजान था पहले
राह चलते
दूब पे लिपटी
धानी-हल्की पीली नज़्म दिखी इक
नज़्म उठा के
गौर से परखी
चेहरे पे मल दी
ओढ़ ली पूरी
अब मैं खुद से नहीं
उस नज़्म से हूँ
ज़िंदा- धानी सा
हल्का पीला
बदरंग सही-
पहचान तो जाते हैं सब !
मन की रेत पर नहीं, यहाँ इस चट्टान पे लिखूँगा अब, जब मैं न मिलूं, पढ़ लेना, मेरे स्वर हैं, गुनगुनाओ कभी जब, मुझको महसूस करोगे !
स्वर ♪ ♫ .... | Creative Commons Attribution- Noncommercial License | Dandy Dandilion Designed by Simply Fabulous Blogger Templates